- अभिमत

संघ : राजनीतिक उपकरण नहीं है।

प्रतिदिन विचार

संघ : राजनीतिक उपकरण नहीं है।

और केंद्र सरकार ने एक आदेश के जरिये सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर लगी रोक को हटा लिया है। तब-जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अगले साल शताब्दी वर्ष मनाने जा रहा है। इस निर्णय से सरकार और एक सांस्कृतिक राष्ट्रवादी संगठन के मध्य दिखाई जा रही दूरी कम होगी, भाजपा का उद्देश्य जो भी रहा हो या हो, संघ को अपने लक्ष्य साधन में जुट जाना चाहिए।

इस निर्णय को लेकर विपक्षी राजनीतिक दलों की तल्ख प्रतिक्रिया सामने आई है। वहीं संघ ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि तत्कालीन सरकार ने निराधार ही शासकीय कर्मियों के संघ की गतिविधियों में भाग लेने पर रोक लगायी थी। यह भी कि वर्तमान सरकार का निर्णय लोकतांत्रिक व्यवस्था को पुष्ट करने वाला है। वहीं राजनीतिक पंडित कयास लगा रहे हैं कि लोकसभा चुनाव परिणाम सामने आने के बाद संघ व सरकार के बीच मनमुटाव की जो खबरें आ रही थीं, हालिया फैसले को सरकार की संघ से उसी तल्खी को दूर करने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है। जिससे जनमानस में यह संदेश दिया जा सके कि भाजपा व संघ में किसी प्रकार का मनभेद व मतभेद नहीं है। वहीं संघ दावा करता है कि इस कदम से देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था मजबूत होगी।

हाल ही में संघ की तरफ से जो बयान सामने आ रहे थे, उससे लग रहा था कि भाजपा व संघ के रिश्ते खराब दौर से गुजर रहे हैं। संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार ने तो कहा था कि भगवान राम ने एक अहंकारी पार्टी को रोका है, जो रामभक्त होने का दावा करती है। यहां तक कि संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर में लिखा गया था कि भाजपा कार्यकर्ताओं के अति उत्साह के चलते पार्टी के जनाधार में गिरावट आई है। साथ ही संघ प्रमुख ने बिना नाम लिये पार्टी नेतृत्व के सुपरमैन व भगवान समझने की महत्वाकांक्षा का जिक्र किया था। इन बयानों को लेकर कयास लगाए जा रहे थे कि संघ का भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से मोहभंग हो गया है। ऐसे में जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अगले साल शताब्दी वर्ष मनाने जा रहा है, भाजपा का यह कदम दोनों के बीच रिश्ते सामान्य करने की दिशा में उठाया गया कदम कहा जा रहा है।

केंद्र के इस फैसले के बाद कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल सरकार को निशाने पर ले रहे हैं। कांग्रेस ने सरकार पर हमले तेज कर दिए हैं। पार्टी ने 58 साल पहले वर्ष 1966 में संघ पर लगाये गए प्रतिबंध को हटाने के औचित्य पर सवाल उठाए हैं। कहा जा रहा है कि जनसंघ, वाजपेयी सरकार और मोदी सरकार की पिछली एक दशक की सरकार के दौरान भी यह प्रतिबंध नहीं हटाया गया था।

सर्व विदित है 7 नवंबर 1966 को संसद के सामने गोहत्या के खिलाफ एक बड़ा प्रदर्शन हुआ था। संघ व जनसंघ के प्रयासों से लाखों लोग जुटे थे और पुलिस के साथ टकराव में कई लोगों की जान गई थी। जिसके बाद इंदिरा गांधी सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के संघ में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया था। वहीं संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख का कहना है कि संघ पिछले 99 साल से राष्ट्र के सतत निर्माण व समाज सेवा में संलग्न रहा है। अपने राजनीतिक स्वार्थ के चलते तत्कालीन सरकार ने शासकीय कर्मचारियों को संघ जैसे रचनात्मक संगठन की गतिविधियों में भाग लेने हेतु निराधार प्रतिबंधित किया था। हालांकि, इस बीच मध्यप्रदेश समेत कई राज्य सरकारों ने इस आदेश को निरस्त कर दिया था,लेकिन केंद्र सरकार के स्तर पर यह प्रतिबंध वैध बना हुआ था। इसी मामले को लेकर इंदौर की एक अदालत में वाद चल रहा था, जिसमें अदालत ने इस बाबत केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। फिर केंद्र ने एक आदेश जारी कर प्रतिबंध को खत्म करने की घोषणा की है।

अब बारी संघ की। उसे यह प्रमणित कारण होगा कि प्रतिबंध के लगने या हटने से उसकी सांस्कृतिक राष्ट्रवादी छबि बरकरार है, वह किसी राजनीतिक दल का राजनीतिक उपकरण नहीं है।

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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