हॉन्गकॉन्ग: पिछले एक सप्ताह से विवादित प्रत्यर्पण बिल को लेकर हॉन्गकॉन्ग के नागरिकों का विरोध प्रदर्शन जारी था। इसमें 10 लाख लोग शामिल हुए। इसके बाद सरकार ने इसे लागू करने पर रोक लगा दी है। शनिवार को प्रो-बीजिंग नेता कैरी लैम ने कहा- सरकार ने समाज के सभी वर्गों की बात को ध्यान में रखते हुए बिल पर फिलहाल रोक लगाई है।
लैम के मुताबिक बिल को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इसमें कितना समय लगेगा? इस बारे में पक्का नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि मैं वादा भी नहीं कर सकती हूं कि बिल वापस होगा भी या नहीं? हम इस बिल को विधान परिषद के सामने पेश करेंगे। हमारी तरफ से बिल आगे बढ़ा दिया गया।
प्रो-बीजिंग नेता लैम ने अधिकारियों के साथ बैठक के बाद लिया फैसला
साउथ चाइना पोस्ट के मुताबिक, शुक्रवार रात लैम ने सलाहकारों के साथ एक बैठक की। दूसरी ओर शेनझेन शहर के पास चाइनीज अधिकारियों ने भी इस मामले पर बैठक की थी। इसके बाद विधेयक को रोकने का निर्णय लिया गया।
रिपोर्ट के अनुसार लैम को बीजिंग का समर्थन करने वाली विश्वसनीय समिति ने ही नियुक्त किया था। बावजूद इसके लैम ने कई महीनों तक हॉन्गकॉन्ग के व्यापारियों और नागरिकों के द्वारा किए जा रहे बिल के विरोध को नजरअंदाज किया था।
9 जून को विरोध प्रदर्शन के लिए 10 लाख लोग सड़कों पर उतरे। लैम ने कहा- हमें दुख और अफसोस है कि हमारे काम ने समाज में विवादों को जन्म दिया। पिछले 2 साल से यहां बेहद शांति थी।
12 जून को 50 हजार से ज्यादा लोगों ने काले कपड़ों में विरोध जताया। 12 घंटे तक शहर में जाम की स्थिति बनी रही। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए न सिर्फ आंसू गैस के गोले छोड़े बल्कि रबर की गोलियां भी चलाईं। 79 लोग घायल हुए जबकि 2 की हालत गंभीर हो गई।
दरअसल, हॉन्गकॉन्ग के मौजूदा प्रत्यर्पण कानून के अंतर्गत कई देशों से प्रत्यर्पण समझौते नहीं है। चीन को भी अब तक इस कानून से बाहर रखा गया था। नया विधेयक न सिर्फ इस कानून का विस्तार करेगा बल्कि और ताइवान, मकाऊ और मेनलैंड चीन के साथ संदिग्धों को प्रत्यर्पित करने की अनुमति देगा।
यह हॉन्गकॉन्ग का अब तक का सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन था। इससे पहले 1997 में ऐसा विरोध देखने को मिला था। जब 1997 में यूके-चीन समझौते के तहत हॉन्गकॉन्ग, चीन को सौंपा गया था। विवादित बिल का विरोध कर रहे लोगों ने इसे अपारदर्शी करार दिया।