- अभिमत

गाँधी के देश में आन्दोलन का अधिकार

 

प्रतिदिन
गाँधी के देश में आन्दोलन का अधिकार
मध्यप्रदेश के इंदौर -३ से निर्वाचित भाजपा विधायक आकाश विजयवर्गीय ने जमानत पर रिहा होते ही गाँधी को अर्थात मोहनदास करमचंद गाँधी को याद किया | एक कहावत है “मजबूरी का नाम ——“ | वैसे इस मामले में यह नजीर काम नहीं करेगी| क्योंकि गाँधी के इस देश में अब आन्दोलन और शांति प्रिय आन्दोलन करना मुश्किल होता जा रहा है | यह बात भी एकदम सही है की यदि आज गाँधी जी होते और आन्दोलन करना चाहते तो नही कर पाते | मेरे एक परम मित्र गाँधीवादी है पर लोहिया के ज्यादा नजदीक हैं एक बरस पहले दिल्ली में जो भोग कर आये हैं, वो भारत में शांतिप्रिय आन्दोलन का पूर्ण विराम है | दिल्ली हो या कोई भी शहर शांति प्रिय नागरिक आन्दोलन नहीं कर सकता | गुलाम भारत में गांधी जी अवज्ञा आन्दोलन कर  देते थे, आजाद भारत में सरकार के खिलाफ आन्दोलन के लिए सरकार की ही अनुमति लगती है | सरकार की पहलवान पुलिस, जगह, फला टेंट हॉउस, फलां साउंड सर्विस की हामी के बाद, सरकार के कारिंदे कलेक्टर के नाम पर देती है | इतना ही नही सरकार के जिस मुखिया को ज्ञापन सौंपना  होता है, वो तो आन्दोलनकारियों से मिलने में अपनी हेठी समझते हैं | पुलिस के हेड साब  ज्ञापन पर चिड़िया बना कर आन्दोलन को हवा कर  देते हैं | आप चाहे तो मेरे मित्र रघु ठाकुर से दिल्ली की फजीहत पूछ सकते हैं | भोपाल और अन्य शहरों की फजीहत आप देख सकते हैं | आन्दोलन या तो सरकार की  चिरौरी से हो सकते हैं या अपने कमरे में चुपचाप |
मैं आकाश के क्रिकेट बेट आन्दोलन का पक्ष नहीं ले रहा हूँ, पर वर्तमान आंदोलनों की फजीहतों के देखते हुए, ये शेर याद आता है “कुछ तो मजबूरियां रही होगी…….| जेल से  आने के बाद आकाश ने कहा, ‘मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि मुझे दोबारा बल्लेबाजी करने का अवसर न दे। अब गांधीजी के दिखाए रास्ते पर चलने की कोशिश करूंगा।“ आकाश ने मीडिया से कहा, ”जब पुलिस के सामने ही एक महिला को खींचागया तो , मुझे उस समय कुछ और करने की बात समझ में नहीं आई। मैंने जो भी किया मुझे उसका अफसोस नहीं। लेकिन भगवान मुझे दोबारा बल्लेबाजी करने का मौका नहीं दे।” अब आकाश के खिलाफ दूसरा मामला बिजली कटौती को लेकर बिना अनुमति प्रदर्शन से जुड़ा है |पुलिस ने इस मामले में जेल में भी उनकी गिरफ्तारी की है |

दिल्ली में खम्बे पर  चढ़ कर  बिजली जोड़ने वाला मुख्यमंत्री बन गया | गाँधी ने कभी बिजली नहीं जोड़ी सारे आन्दोलन अहिंसक किये | अब अनुमति का मकडजाल आन्दोलन की हवा निकाल देते हैं और जिस सरकार के खिलाफ आन्दोलन हो रहा है, वो प्रतिपक्षी हुई तो बंगाल जैसा होने में देर नहीं लगती |आकाश के वकीलों के वकीलों कि भी ऐसी ही दलील है  जिस महिला का मकान तोड़ा जा रहा था वह घटना वाले दिन ढाई बजे निगम अफसरों के खिलाफ बदसलूकी करने की रिपोर्ट लिखवाने गई थी। उसकी सुनवाई नहीं हुई तो विधायक वहां पहुंचे और वो सब हो गया जिसकी उम्मीद नहीं थी |आकाश को लेकर हो रही राजनीति भारतीय जन आन्दोलन की झांकी है | इस झांकी में पुलिस आज भी सरकार की गुलाम नजर आती है | नेता भी अपने को कहते जनसेवक हैं, पर उनकी शक्ल माफिया की होती जा रही है | गाँधी जी आज होते तो सत्याग्रह करते|  इस सच्ची बात पर  गौर फरमाएं जन आन्दोलन को सरकारी कारकूनों से बचायें|

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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