प्रतिदिन
बैंकिग : कुछ और फैसले शेष
दो बड़े फैसले भारतीय बैंकों ने लिए है | इन फैसलों का देश के आर्थिक स्वास्थ्यप्र कितना असर होगा, यह समय बताएगा| एक फैसला कल से लागू हुआ और एक बैंकिंग व्यवस्था में परिवर्तन है, जिसकी मांग माल्या- मोदी के देश से नदारद होने के बाद जोरों पर थी |इन दोनों विषयों पर हर बैंक अपने हिसाब से निर्णय लेती थी अब ऐसा नहीं हो सकेगा | पहला निर्णय भारतीय रिजर्व बैंक के निर्णयानुसार आरटीजीएस और एनईएफटी प्रणाली के जरिये पैसा भेजना कल एक जुलाई से सस्ता हो गया है | रिजर्व बैंक ने इस तरह के धन प्रेषण पर बैंकों के ऊपर किसी भी तरह का शुल्क नहीं लगाने का फैसला किया है |
दूसरे फैसले से फंसे हुए कर्ज की समस्या पर लगाम लगती दिखती है। फंसे हुए कर्ज का चक्र मार्च २०१८ में उच्चतम स्तर पर था । भारतीय रिजर्व बैंक की अथक मेहनत रंग लाई है, जो उसने फंसे हुए कर्ज को चिह्नित करने में की थी । आरबीआई की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश ऐसी परिसंपत्ति के चिह्नित हो जाने के कारण सकल एनपीए अनुपात मार्च २०१९ में गिरकर ९.३ प्रतिशत हो गया और मार्च २०२० तक इसके ९ प्रतिशत हो जाने का अनुमान है। सरकारी बैंकों के सकल एनपीए अनुपात में भी गिरावट आ सकती है और यह मार्च २०१९ के 12.6प्रतिशत से गिरकर मार्च २०२० तक १२ प्रतिशत हो सकता है। वहीं निजी क्षेत्र के बैंकों का सकल एनपीए अनुपात ३.७ प्रतिशत से सुधरकर ३.२ प्रतिशत हो सकता है।
वैसे सभी बैंकों का प्रोविजन कवरेज रेशियो (पीसीआर) तेजी से बढ़ता हुआ मार्च २०१९ में ६०.६ प्रतिशत हो गया। इससे पहले सितंबर २०१८ में यह ५२.४ प्रतिशत था |जबकि मार्च२०१८ में ४८.३ प्रतिशत था। इससे बैंकिंग क्षेत्र में मजबूती आई है। रिकग्निशन, रिजॉल्युशन और रिकवरी के तीन ‘आर’में से पहला आर हकीकत में बदल चुका है। अब इसका अधिक कठिनाई भरा हिस्सा बकाया है। अच्छी खबर यह है कि ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) एक मजबूत नियमन है, हालांकि कुछ मामलों में निस्तारण अदालती चक्कर में उलझा हुआ है। आरबीआई के जून २०१९ में जारी तनावग्रस्त परिसंपत्ति से
संबंधित संशोधित खाके के अनुसार बैंकों के लिए ऋणशोधन के आवेदन में देरी करने पर उनका नुकसान होना है। दिलचस्प बात है कि केंद्रीय बैंक ने व्यवस्थित जोखिम संबंधी सर्वेक्षण में पाया कि प्रतिक्रिया देने वालों में से आधे यह मानते हैं कि अगले एक वर्ष में भारतीय बैंकिंग क्षेत्र की संभावनाओं में कुछ सुधार होगा। इसमें आईबीसी की प्रक्रिया के तहत आई स्थिरीकरण का भी योगदान रहेगा। रिपोर्ट के मुताबिक इससे घरेलू वित्तीय क्षेत्र में विश्वास भी बहाल होगा।
बैंकों के लिए यह समझना जरूरी है कि वे अब पुराने तौर तरीकों से काम नहीं करते रह सकते। वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट यह भी कहती है कि अगर सरकार ने अतिरिक्त पूंजी नहीं दी तो अगले वर्ष तक कम से कम पांच बैंक न्यूनतम पूंजी पर्याप्तता के नियामकीय स्तर से नीचे रहेंगे। बैंकों का पुनर्पूंजीकरण एक अस्थायी उपाय भर है जबकि स्थायी निदान होगा| गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की दशा गंभीर है । इस क्षेत्र का सकल एनपीए अनुपात २०१७-१८ के ५.८ प्रतिशत से बढ़कर २०१८-१९ में ६.६ प्रतिशत हो गया। जबकि पूंजी पर्याप्तता अनुपात मार्च २०१८ के २२.८ प्रतिशत से घटकर१९.३ प्रतिशत रह गया। सबसे बढ़कर कुछ गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां देनदारी चूक रही हैं या अपने भुगतान दायित्वों का निबाह नहीं कर पा रही हैं। परंतु केवल ये इतना पर्याप्त नहींहै ,नियामक को भविष्य में संक्रमण के जोखिमों से बचने के लिए अग्रगामी कदमों पर विचार करने की आवश्यकता है।नई व्यवस्था नया रंग और नये परिणाम देश देखेगा |