प्रतिदिन
सोशल मीडिया सरकार की जगह स्वनियंत्रण की दरकार
सोशल मीडिया वरदान की जगह अभिशाप होता जा रहा है, अब राज्य और केंद्र दोनों निगहबानी के मंसूबे तैयार कर रहे हैं | दिन ब दिन दुरूपयोग की शिकायतें बढती जा रही हैं | मध्यप्रदेश शासन ने सोशल मीडिया पर पर हुए प्रचार के परिणामस्वरूप पेटलावद में हुई अशांति के बाद इस हेतु पृथक विधि बनाने से सहमति व्यक्त की है |इस विधि के लिए इस अशांति की जाँच के लिए गठित एकल सदस्यीय पाण्डेय जाँच आयोग ने सिफारिश की थी |
इसके राष्ट्रीय प्रभाव भी सामने आये हैं | मानव संसाधन विकास मंत्रालय यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है कि उसके नियंत्रण में आने वाले करीब 900 उच्च शिक्षण संस्थान सकारात्मक सोशल मीडिया प्रोफाइल तैयार करें। क्योंकि मंत्रालय का काम एक ऐसे अहम क्षेत्र का प्रबंधन करना है जहां सीमित संसाधनों के साथ ढेरों समस्याएं मुंह बाये खड़ी हैं। बहरहाल, सोशल मीडिया संबंधी पहल में एक परेशान करने वाली बात यह है कि इसकी अनुशंसाओं में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे करीब तीन करोड़ छात्रों से यह कहना भी शामिल है कि वे अपने सोशल मीडिया खातों को अपने संस्थान के खाते से जोड़ें। इससे तमाम छात्र व्यापक निगरानी ढांचे के शिकार हो सकते हैं। इसके साथ ही निजता भंग होने की आशंका भी प्रबल हो जाएगी।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सचिव ने यह अनुशंसा की है कि प्रत्येक उच्च शिक्षा संस्थान अपने कर्मचारियों में से एक को सोशल मीडिया प्रमुख के रूप में नियुक्त करे। यह व्यक्ति फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर संस्थान की प्रोफाइल की देखरेख करेगा। यह व्यक्ति हर सप्ताह संस्थान के बारे में कुछ सकारात्मक खबर भी जारी करेगा और मंत्रालय तथा अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों की प्रोफाइल के साथ लिंक करने के बाद रीट्वीट करने, सकारात्मक पोस्ट का प्रसार करने इन संस्थानों की अन्य अच्छी खबरों का प्रसार करने का काम करेगा। इस व्यक्ति की तलाश ३१ जुलाई तक की जानी है। यही व्यक्ति छात्रों से यह अनुरोध करेगा कि वे अपने सोशल मीडिया खाते को संस्थान के प्रोफाइल के साथ जोड़ें। छात्रों से भी कहा जाएगा कि वे उच्च शिक्षण संस्थानों के बारे में सकारात्मक खबरों का प्रचार प्रसार करें।संभव है कि छात्रों के ट्विटर, फेसबुक या इंस्टाग्राम खातों को बिना उनकी निजी जानकारी हासिल किए भी संस्थान के साथ जोड़ा जा सके लेकिन तब भी मंत्रालय को बहुत बड़े पैमाने पर डेटा विश्लेषण करना होगा। इससे सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वालों की गोपनीयता समाप्त हो जाएगी क्योंकि उनके खाते उनकी पहचान और संस्थान के नाम के साथ नजर आएंगे।
सरकार की आलोचना करने पर आमतौर पर सरकार समर्थक ट्रोल (सोशल मीडिया पर किसी के पीछे पड़ जाने वाले) हमलावर हो जाते हैं और कुछ मामलों में तो आलोचकों को गिरफ्तार तक किया गया है, ऐसे में यह गंभीर मसला है। अगर सोशल मीडिया की निगरानी शुरू हो गई तो जो छात्र असहमति जताते हैं, उन्हें कई तरह से इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है। जाहिर है इसका अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहुत गहरा असर पड़ सकता है।
सोशल मीडिया की समाज को लाभान्वित करने वाली गतिविधियों को बढ़ावा देने के अन्य तरीके खोजने होंगे । सरकार के विभाग पारदर्शिता अपना कर आसानी से सकारात्मक प्रतिपुष्टि और टिप्पणियों की ऑनलाइन व्यवस्था कर सकते हैं । सोशल मीडिया खाते लिंक करने की राय प्रतिगामी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। सोशल मीडिया पर लोग एक दूसरे से अनौपचारिक बातचीत करते हैं, किसी भी मंत्रालय को इतने बड़े पैमाने पर उसकी निगरानी करके सोशल मीडिया प्रोफाइल नहीं तैयार करनी चाहिए।