- अभिमत

देश की जरूरत है, समग्र जल प्रबन्धन नीति

प्रतिदिन
देश की जरूरत है, समग्र जल प्रबन्धन नीति

सम्पूर्ण देश में लगातार जल आपूर्ति की स्थिति गंभीर होती जा रही है। ‘केन्द्रीय भू-जल बोर्ड’ द्वारा प्रदत्त आंकड़ों के अनुसार वर्ष २०५०  तक हमारी जल आवश्यकता ११८०  अरब घन मीटर होगी। वर्तमान में हमारी जल उपलब्धता ११२३  अरब घन मीटर है जिसमें से ६९०  अरब घन मीटर सतही जल से और ४३३  अरब घन मीटर भू-जल से प्राप्त होता है। ग्लेशियर पिघलने की दर १९७५ -२००० के मुकाबले में २००१-२०१९ के बीच दोगुनी हो चुकी है जिससे ग्लेशियरों से प्राप्त होने वाले जल में धीरे-धीरे कमी आती जा रही है। दूसरी तरफ, भू-जल दोहन की गति भी निर्बाध बढ़ती जा रही है। इसकी स्थिति भी आने वाले समय में बद से बदतर होने वाली है। आंकड़ों की बात करें तो वर्ष १९५१  में प्रति व्यक्ति, प्रतिदिन जल उपलब्धता १४११८ लीटर थी जो आज घटकर ३१२० लीटर रह गई है। सम्पूर्ण देश में में भू-जल दोहन की गति भू-जल भरण की दर से अधिक है।
दिल्ली, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद में वर्ष २०२०  तक भूजल समाप्त होने के अंदेशे है। देश के विभिन्न भागों में पानी रेल गाड़ियों और टैंकरों से लाकर इस साल ही पिलाया गया है। पानी की सबसे ज्यादा मांग सिंचाई के लिए, उसके बाद घरेलू प्रयोग, निस्तार के लिए और फिर उद्योगों के लिए है। उद्योगों के लिए पानी की जरूरत तुलनात्मक दृष्टि से भले कम हो, किन्तु सतही और भू-जल को प्रदूषित करने में उद्योगों की बड़ी भूमिका है। इसके अलावा कृषि में प्रयोग हो रहे रसायनों और शहरी मल से भी जल प्रदूषण बढ़ रहा है। कमी की गंभीर स्थिति में हम जल को इस तरह प्रदूषित करने की लापरवाही नहीं बरत सकते। गुडगांव में अवैध नलकूपों से प्रतिदिन ४  करोड़ लीटर पानी निकाला जा रहा है। दस वर्षों में यहां का जल स्तर १६  मीटर नीचे चला गया है। देश के २५५  जिले पानी की कमी से जूझ रहे हैं।
जल का असमान वितरण भी एक समस्या है। देश के ३६  क्षेत्रों में ७१  प्रतिशत जल उपलब्ध है और ६४  क्षेत्रों में २९ प्रतिशत जल की उपलब्धता है। इससे एक तरफ बाढ़ और दूसरी तरफ,सूखे का क्रम चलता रहता है। इसके अतिरिक्त अकुशल जल प्रबन्धन, अनियंत्रित भू-जल दोहन और औद्योगिक व शहरी मल, जल और कचरे से जल-प्रदूषण जैसी अन्य महत्वपूर्ण समस्याएं हैं। जनसंख्या की अनियंत्रित वृद्धि के चलते समस्याएं ज्यादा विकट रूप लेने वाली हैं। वर्ष २००४  के बाद से भू-जल मापन का कार्य भी विश्वसनीय आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके नहीं किया गया है। जब तक हमें समस्या और अपनी स्थिति का पूरा पता न हो तब तक समस्या के समाधान की योजना बनाना व्यावहारिक नहीं हो पाता। इस विकट परिस्थिति से निकलने के लिए वैज्ञानिक समझ के आधार पर दीर्घकालीन समझ के साथ गंभीर योजना बनाने की जरूरत है।
शहरी मल जल को संशोधित करके सिंचाई के लिए उपयोग करने की बृहद योजना बनाई जानी चाहिए। पानी की बचत,पानी को प्रदूषण से बचाना तो अपनी जगह जरूरी है ही,किन्तु वर्षा के जल का सतह पर और भू-जल के रूप में संरक्षित करना भी उतना ही जरूरी है। इसलिए भू-जल भरण के पुराने और आधुनिक तरीकों का प्रयोग करके विकेंद्रित जल संरक्षण पर जोर दिया जाना चाहिए। कुएं, तालाब, झीलें और आधुनिक रिचार्जिंग नलकूप बना कर बड़े पैमाने पर काम होना चाहिए। पूरे देश में जल भरण क्षेत्रों और जल निकास क्षेत्रों का सर्वेक्षण होना चाहिए ताकि भू-जल भरण का काम कहां करना है, यह पता चल सके।

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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