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अनुच्छेद 35-ए को कश्मीरियों के लिए संसद की मंजूरी के बगैर जोड़ा गया था, इसी तरह इसे हटाया भी जा सकता है

नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने कश्मीर में 10 हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती का फैसला किया है। ये कयास लगाए जा रहे हैं कि सरकार शायद कश्मीर के लोगों को विशेषाधिकार देने वाले अनुच्छेद 35-ए को हटाने की तैयारी में है। पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसे कश्मीर के राजनीतिक दल ऐसे किसी भी फैसले के खिलाफ सरकार को आगाह कर रहे हैं। ऐसे में भास्कर ऐप ने एक्सपर्ट्स से जाना कि आखिर 35-ए से किसे ज्यादा फायदा होता है और इसके हटने पर देश या राज्य को क्या फायदे हो सकते हैं?

कश्मीर में बीएसएफ और सीआरपीएफ की इंटेलिजेंस विंग का नेतृत्व कर चुके रिटायर्ड आईजी के. श्रीनिवासन बताते हैं कि अनुच्छेद 35-ए का सबसे ज्यादा फायदा पाकिस्तान और अलगाववादी उठाते हैं। अगर इसे हटाया जाता है तो इससे राज्य के हालात बेहतर होंगे। वहां रोजगार के अवसर पैदा होंगे। वहीं, संविधान मामलों के जानकार और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता विराग गुप्ता कहते हैं कि राज्यपाल की रिपोर्ट और केंद्र सरकार की सिफारिश के आधार पर राष्ट्रपति इसे हटा सकते हैं।

अनुच्छेद 35-ए क्या है?

1952 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला के बीच दिल्ली समझौता हुआ था। इसी समझौते के आधार पर 14 मई 1954 को राष्ट्रपति के आदेश के बाद अनुच्छेद 35-ए को संविधान के अनुच्छेद 370 में जोड़ा गया था। अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को स्वायत्त राज्य का दर्जा देता है। वहीं, अनुच्छेद 35-ए जम्मू-कश्मीर में रहने वाले लोगों की परिभाषा तय करता है और उन्हें विशेष अधिकार देता है।
इसके मुताबिक वही व्यक्ति राज्य का मूल निवासी माना जाएगा, जो 14 मई 1954 से पहले राज्य में रह रहा हो या जो 14 मई 1954 से 10 साल पहले से राज्य में रह रहा हो और जिसने कानून के मुताबिक राज्य में अचल संपत्ति खरीदी हो। यानी, जिसके पूर्वज 14 मई 1944 से जम्मू-कश्मीर में रह रहे होंगे, वही राज्य का स्थायी नागरिक कहलाएगा। सिर्फ जम्मू-कश्मीर विधानसभा ही इस अनुच्छेद में बताई गई राज्य के स्थायी निवासियों की परिभाषा को दो तिहाई बहुमत से बदल सकती है।
क्या इसे संसद के जरिए नहीं जोड़ा गया था?
नहीं। इस अनुच्छेद को केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के आदेश के बाद संविधान में जोड़ा गया था। हालांकि, संविधान के अनुच्छेद 368 के मुताबिक, इस तरह का कोई भी संशोधन सिर्फ संसद की मंजूरी से ही किया जा सकता है।

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