- अभिमत

कुछ कीजिये, इस कैंसर का इलाज

प्रतिदिन
कुछ कीजिये, इस कैंसर का इलाज

एक ताजे अध्ययन के अनुसार दुनियाभर के विकासशील देशों  में कैंसर की बीमारी बहुत तेजी से बढ़ रही है, भारत भी इसकी चपेट में हैं | पंजाब से दिल्ली तो रोज चलने वाली एक ट्रेन का नाम ही “कैंसर एक्सप्रेस “ हो गया है | अब  तो बड़ी संख्या में बच्चे भी इसकी चपेट में आ रहे हैं| वैश्विक स्तर पर कैंसर के शिकार बच्चों की ८२ प्रतिशत संख्या विकासशील देशो में उनकी है जहाँ प्रति व्यक्ति आय कम है|

में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, इन देशों में रोग की शुरुआती पहचान न हो पाने और मामूली उपचार के कारण धन स्वास्थ्य और समय बर्बाद हो रहा हैं| अगर अधिक आबादी के ५० देशों पर नजर डालें, तो भारत, चीन,नाइजीरिया, पाकिस्तान और इंडोनेशिया में यह समस्या बेहद गंभीर है|

बच्चों के मामलों में तो  विकासशील देशों में रोग की पहचान होने के बाद भी ४० प्रतिशत से कम ही बच्चे पांच साल की उम्र के बाद जीवित रह पाते हैं, जबकि विकसित देशों में यह आंकड़ा ८० प्रतिशत के आसपास है| इस स्थिति को यदि हर उम्र के कैंसर मरीजों की संख्या के साथ देखें, तो एक भयानक तस्वीर उभरती है| लांसेट जर्नल में छपे एक अन्य शोध के अनुसार, चीन और अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा कैंसर रोगी भारत में हैं| पिछले साल हमारे देश में ६.७० लाख नये मरीजों को कीमोथेरेपी की दरकार थी और २०४०  तक यह संख्या हर साल 11 लाख से अधिक होने का अनुमान लगाया जा रहा है | अगर गंभीर कैंसर से पीड़ित रोगियों को भी इसमें शामिल कर लें, तो यह तादाद १२  से १५  लाख तक भी जा सकती है|

वर्ष २०१८  में ७.८४ लाख मौतों का कारण कैंसर था और इसी साल ११.५ लाख नये रोगियों की पहचान हुई थी| अभी देश में कैंसर पीड़ितों की संख्या लगभग २२.५ लाख है. स्वास्थ्य सेवा की सीमित पहुंच और लचर व्यवस्था के कारण एक तो ८३ प्रतिशत  रोगियों को समुचित उपचार नहीं मिल पाता है, वहीं १५ प्रतिशत बीमार गलत इलाज की चपेट में हैं| लगभग २७ प्रतिशत रोगियों को कीमोथेरेपी की सही दवाएं नहीं मिल पाती हैं| बीते ढाई दशकों में कैंसर की चुनौती दुगुने से भी अधिक हो चुकी है| इस रोग का मुकाबला करने के लिए आगामी दो दशकों में हमें ७३००  विशेषज्ञ कैंसर चिकित्सक चाहिए| इनके साथ अन्य प्रशिक्षित कर्मी, इंफ्रास्ट्रक्चर और संसाधन भी जुटाने होंगे| अभी भारत में अभी करीब १२५० के आसपास विशेषज्ञ चिकित्सक ही हैं|

कैंसर जानलेवा होने और स्वस्थ जीवन पर ग्रहण के साथ कैंसर एक आर्थिक चोट भी है| एक अध्ययन के मुताबिक,२०१२ में कैंसर के कारण ६.७ अरब डॉलर मूल्य की उत्पादकता का नुकसान हुआ था, जो हमारे सकल घरेलू उत्पादन का ०.३६ प्रतिशत हिस्सा था|महंगे उपचार और बदहाल सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के कारण लाखों लोग हर साल गरीबी के चंगुल में फंस जाते हैं|
गंभीर कैंसर के इलाज का खर्च देश की अधिकांश आबादी की सालाना पारिवारिक आमदनी से भी ज्यादा है| पिछले कुछ सालों से केंद्र सरकार नयी स्वास्थ्य नीति के तहत राज्य सरकारों के साथ कई स्तरों पर पहलकदमी कर रही है| बजटीय आवंटनों में भी बढ़ोतरी हुई है| इन प्रयासों में कैंसर की रोकथाम पर प्राथमिकता मिलनी चाहिए क्योंकि यह रोग धीरे-धीरे महामारी बनता जा रहा है|

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *