- अभिमत

क्या सरकारें राजस्व के मामले में तालमेल नहीं बैठा सकती ?

प्रतिदिन
क्या सरकारें राजस्व के मामले में तालमेल नहीं बैठा सकती ?
बड़ी अजीब बात है केंद्र की सरकार अपने खजाने के दरवाजे खोल रही है और मध्यप्रदेश की राज्य सरकार ने देश में सबसे ज्यादा महंगे पेट्रोल-डीजल को और महंगा कर दिया है | मध्यप्रदेश के नागरिकों को हमेशा पेट्रोल और डीजल की कीमत ज्यादा चुकानी पड़ी है अब तो सरकार रातोंरात टैक्स की दर बढ़ा रही है | दोनों सरकारों के मध्य कोई तालमेल है ही नहीं | नुकसान कर दाता का हो रहा है |
भोपाल में अब पेट्रोल २.९१ रु. और डीजल २.८६ रु. लीटर रु. महंगा हो गया है। इंदौर में पेट्रोल ३.२६ रु. और डीजल ३.१४ रुपए प्रति लीटर महंगा हो गया है। शराब की कीमत भी वर्तमान से ५ प्रतिशत ज्यादा होगी। नई दरें शुक्रवार मध्यरात्रि के बाद से ही लागू हो गई हैं।
पिछली जुलाई में ही सरकार पेट्रोल-डीजल पर दो रुपए प्रति लीटर स्पेशल ड्यूटी लगा चुकी है। स्पेशल ड्यूटी लगाते समय भी यह अनुमान लगाया गया था कि राज्य सरकार को ८०० से १००० करोड़ रुपए अतिरिक्त मिलेंगे। अब पांच फीसदी वैट बढ़ने के बाद यह आंकड़ा सवा दो हजार करोड़ रुपए से ज्यादा होगा। मुख्यमंत्री कमलनाथ की मंजूरी के बाद देर रात इसकी अधिसूचना जारी की गई। जुलाई के पहले पखवाड़े में केंद्र सरकार ने सेस लगाया तो मप्र सरकार ने भी लगे हाथ दो रुपए स्पेशल ड्यूटी लागू कर दी थी। सवा महीने बाद वैट बढ़ाकर फिर पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि की है। वैट बढ़ाने से सरकार को ६ माह में करीब १५०० करोड़ रुपए मिलने का अनुमान है।
दूसरी और केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा की जा रहीं लगातार घोषणाएं इंगित करती हैं कि अर्थव्यवस्था को गति देना सरकार की शीर्ष प्राथमिकता है| तीसरे चरण में घोषित उपाय विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए लक्षित हैं, जो बेहद दबाव में है| रियल इस्टेट की अधूरी पड़ी योजनाओं के लिए सरकार ने १० हजार करोड़ रुपये देने का निर्णय किया है. इतनी ही राशि निवेशकों की ओर से भी उपलब्ध करायी जायेगी| आवास परियोजनाओं को पूरा करने की दिशा में यह प्रभावी कदम जरुर कहा जा रहा है| इस मदद से गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के बोझ से दबी और दिवालिया-संबंधी कार्रवाई का सामना कर रही कंपनियों को बाहर रखा गया है, पर विशेषज्ञों का अनुमान है कि बैंकों के साथ बैठक के बाद सरकार रियल इस्टेट में सहयोग बढ़ा सकती है|
इन दोनों निर्णयों के बीच कोई ऐसा तालमेल नहीं दिखता, जिससे आम उपभोक्ता को कोई लाभ हो | राज्य सरकार जहाँ अपना खजाना भर रही है, वही केंद्र सरकार ध्यान आगामी विधानसभा चुनाव पर लगा हुआ है | जिस वर्ग को केंद्र लुभा रहा है, वो चुनाव में मददगार साबित होगा | मध्यप्रदेश सरकार को हाल फिलहाल मतदाताओं से कोई मतलब नहीं है |

आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने में निर्यात की अहम भूमिका होती है|इस क्षेत्र में सरकार ६८ हजार करोड़ रुपये तक उपलब्ध करायेगी और धन की आवाजाही को सुचारु बनाने के लिए निर्यात वित्त पर साप्ताहिक निगरानी होगी| इस पहल में छोटे व मंझोले उद्यमों का ध्यान रखा गया है| ये उद्यम निर्यात में योगदान देकर रोजगार और आमदनी को बढ़ाने में बहुत सहयोग कर सकते हैं| विश्व व्यापार संगठन में किसी तरह की चुनौती से बचने के लिए निर्यात बढ़ाने के तरीकों को खास तरह से तय किया गया है. सरकारी कर्मचारियों के लिए घर बनाने के ऋण पर ब्याज दर घटाने, अगले साल तक चार बड़े शहरों में सालाना खरीदारी महोत्सव आयोजित करने, इस महीने के अंत तक निर्यातकों को वस्तु एवं सेवा कर लौटाने जैसे उपाय भी उत्साहवर्धक हैं| केंद्र सरकार ऐसे निर्णयों में राज्यों से परामर्श भी नहीं लेता भागीदारी तो दूर की बात है

जैसे अगस्त में वित्त मंत्री सीतारमण ने दो चरणों में राहतों की घोषणा की थी| पहले चरण में विदेशी निवेशकों से अधिशेष और स्टार्टअप निवेशकों से कर हटाने तथा बैंकों को ७० हजार करोड़ की नकदी देने की पहल हुई थी| दूसरे चरण में विभिन्न बैंकों के परस्पर विलय का निर्णय लिया गया था| इससे उनके प्रबंधन और संचालन को बेहतर बनाया जा सकता है| इन उपायों के साथ पिछले महीने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों में भी बड़े बदलाव किये गये हैं| इस निर्णय के दौरान जीर्ण-शीर्ण हो रहे राज्यों के सहकारी बैंकों पर विचार नहीं किया गया |

वर्तमान स्थिति को संभालने और भविष्य के लिए ठोस आधार मुहैया कराने की सरकारों में तालमेल जरूरी है |

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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