- अभिमत

खोता जा रहा है, भोपाल का नीला आसमां

प्रतिदिन
खोता जा रहा है, भोपाल का नीला आसमां

ये दिन महानगरों की भांति भोपाल पर भी भारी गुजर रहे हैं, सांस लेना दूभर हो रहा है | ऐसा पहले कभी नहीं हुआ, अक्तूबर में नीला दिखने वाला, आक्सीजन से सराबोर भोपाल का आसमां अब वैसा नहीं है | मौसम की सरकार की तरफ से निगहबानी करने वाले संस्थान भी यह मान रहे हैं कि भोपाल की ताज़ा हवा में तय पैमाने से ५ गुना प्रदूषण है | सांस लेने लायक हवा पैमाना ५० एक्युआई का है और भोपाल में इसकी गुणवत्ता में ५ गुना प्रदूषण मौजूद है | आखिर हुआ क्या है ?
पहली बात, अब वायु गुणवत्ता की स्थिति और हमारे स्वास्थ्य से इसके संबंध के बारे में सार्वजनिक जानकारी उपलब्ध है। कुछ साल पहले, सरकार वायु गुणवत्ता सूचकांक लेकर आई थी जिसमें हमें प्रदूषण के हरेक स्तर का स्वास्थ्य पर पडऩे वाले असर के बारे में बताया गया था। फिर, बड़ी संख्या में वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन बन गए जिनसे हमें फौरन जानकारी मिलती है। हरेक सांस के बारे में जानकारी अब फोन पर उपलब्ध है। सब जानते हैं कि हवा कबसे और कितनी जहरीली हो चुकी है? गुस्से में हैं, पर कर क्या सकते हैं ? वैसे अभी इन निगरानी स्टेशनों का नेटवर्क देश के अन्य हिस्सों में नहीं बन पाया है और अधिकांश शहरों में एक-दो निगरानी केंद्र ही होने से लोगों को वायु गुणवत्ता के बारे में नहीं पता चल पाता है।

दूसरी बात, इस दिशा में कदम उठाए गए हैं, पर पर्याप्त नहीं है । पूरे देश में बीएस-६ मानक वाले अधिक स्वच्छ ईंधन को तय समय से पहले ही लागू करने से डीजल कारों की बिक्री गिरी है। इसका आंशिक कारण डीजल एवं पेट्रोल के बीच कीमत का फासला कम करने की सरकारी नीति है। अदालतों की सख्ती ने भी परंपरागत ईंधन से चलने वाले वाहनों की उम्र सीमा तय करने के अलावा इनकी विषाक्तता के बारे में लोगों को जागरूक करने का भी काम किया है। न्यायालय ने प्रदूषण पर लगाम के लिए मालवाहक वाहनों को शहर में घुसने से रोकने की कोशिश की । यह सब कारगर होता कि बीच शहर में स्मार्ट सिटी का फैलावा फेल गया और धडल्ले से ट्रक शहर में हैं | मिनी बसें, और अन्य बसें भी हैं, जो जैसी भी हैं भोपाल की जरूरत हैं |
वैसे भी अब सार्वजनिक परिवहन को भी उन्नत करने की जरूरत है जिससे निजी वाहनों का प्रयोग बहुत कम हो। मेट्रो आने के पहले भोज और भोपाल में उलझ गई है |

भोपाल में धुंध छाने की मियाद कम हो रही है। अब धुंध देर से छाती है और जल्दी चली जाती है। पिछले तीन वर्षों में उससे पहले के तीन वर्षों की तुलना में 25 प्रतिशत गिरावट देखी गई है। यह एक अच्छी खबर है। बुरी खबर यह है की अब ओस भी उतनी नहीं गिरती जितनी पहले गिरती थी और जमती थी | भोपाल की हवा की विषाक्तता में कमी अपेक्षित वायु गुणवत्ता तक पहुंचने के लिए प्रषदूण में ७५ प्रतिशत की गिरावट और लानी होगी। भोपाल को सड़कों पर दौडऩे वाले वाहनों की संख्या में कमी लानी होगी और इसके लिए बस, मेट्रो के साथ पैदल यात्रियों के लिए भी इंतजाम करने होंगे। हमें पुराने ईंधन मानकों से चल रहे वाहनों को बीएस-६ वाहनों से बदलना भी होगा।

जब तक हम प्रदूषण के स्थानीय स्रोतों पर काबू नहीं पाएंगे, तब तक यह बहुत कारगर नहीं होगा। कचरा जलाने, धूल उडऩे और धुएं से प्रदूषण फैलता है। इस पर काबू पाना मुश्किल है अगर हम जमीनी स्तर पर कारगर क्रियान्वयन नहीं कर पाते हैं या हमारे पास वैकल्पिक उपाय नहीं हैं। सब मिलकर जुटेंगे तो ही खोता हुआ भोपाल का नीला आसमां बचेगा और आक्सीजन से भरपूर होगा |

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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