- अभिमत

नौकरशाही और उससे जुड़े ये सवाल

प्रतिदिन
नौकरशाही और उससे जुड़े ये सवाल
इन दिनों भारतीय प्रशासनिक सेवा और राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की निष्ठा, अपने राजनीतिक संप्रभुओं के प्रति अधिक और राज्य तथा उसके नागरिकों के प्रति कम नजर आ रही है | मध्यप्रदेश में इस निष्ठा के पक्ष-विपक्ष में अधिकारी समूह बनाकर लाम बंद हैं, अन्य राज्य और केंद्र भी इससे अछूते नहीं है | राजनेता और नौकरशाह के गठजोड़ का अंतिम परिणाम राज्य के विरुद्ध निकलता है | अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि गलती कहाँ है ? नियुक्ति में, प्रशिक्षण में या सुगमता से काम करने की पद्धति [जो राजनेता को खुश रखे बगैर असम्भव है ] में है | प्रश्न जटिल है, उत्तर इतिहास के पन्ने टटोलने पर निकलेगा |
भारत विश्व का एकमात्र देश है, जहां एक संघीय और उसके अलावा समस्त राज्यों में भी सांविधानिक लोक सेवा आयोग हैं। यहां आयोगों की भरमार है। पहली बार १ अक्तूबर १९२६ को लोक सेवा आयोग का गठन ऑफ इंडिया ऐक्ट १९१९ के तहत हुआ था| लोक सेवा आयोग का प्राथमिक उद्देश्य एक ऐसा पारदर्शी और योग्य प्रतिष्ठान बनाना था, जो पेशेवर और शासकीय सेवाओं के लिए उपयुक्त व्यक्तियों का उनकी दक्षता के आधार पर चयन कर सके। इस चयन प्रणाली को साकार करने के लिए यह सुनिश्चित करना था कि तमाम राष्ट्रीय व राज्य सेवाएं भाई-भतीजावाद और बाहरी प्रभाव से मुक्त रहें। आज भी उन सिद्धांतों और उद्देश्यों का इतना ही महत्व है, जितना सर्वप्रथम लोक सेवा आयोग के अस्तित्व में आने पर था। अपवाद स्वरूप देश के प्रशासनिक हल्के के एक हिस्से को छोड़ दे तो आज बड़ा हिस्सा अपनी निष्ठा का पालन राजनेताओं के पक्ष में करता दिखता है |इसमें नियम विधि और परम्परा के विपरीत भी कुछ काम होते है, जो बाद में मिसाल बनते हैं और ये मिसाल अच्छी नहीं होती है | यहाँ यह प्रश्न है कि क्या वेतन काम के अनुरूप कम है ?ऐसा बिलकुल नहीं है एक सर्वे के मुताबिक आज राज्य के स्तर पर लगभग ५० से ७० प्रतिशत संसाधनों और साधन-संपत्ति का उपयोग सिर्फ वेतन और अनेक अन्य प्रशासनिक मदों पर खर्च होता है। शेष ५० से ३० प्रतिशत में राशि में देश या प्रदेश चलता है |
हमे आज़ाद हुए ७२ साल हो गए हैं । हमारे साहब उसी पद्धति से चुने जा रहे हैं, जो १९२६ में थी | पाठ्यक्रम में फेरबदल पद्धति में फेर बदल नहीं होता | साहबों के पालनों में छोटे साहब पलते हैं, और “अंकल कृपा” से साहब और बड़े साहब बन जाते हैं | साहबी की कला हमने ब्रिटेन से सीखी है | आज ब्रिटेन के सिविल सर्विस कमिशन का काम सिमट गया है। विश्व के अनेक राष्ट्रों में चयन का उत्तरदायित्व गैर-सरकारी प्रतिष्ठानों को दे दिया गया है। कुछ राष्ट्रों ने चयन प्रक्रिया को मंत्रालयों और विभागों के हवाले कर दिया है। ऐसे विकेंद्रीकरण से हर स्तर पर जिम्मेदारी बढ़ जाती है। भारत में जिम्मेदारी का अभाव है। भारत में बहुत से ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से हम आमूल-चूल परिवर्तन नहीं ला सकते, लेकिन दीमक लगी प्रणाली को बदलने के प्रयास तो निश्चित रूप से किए जा सकते हैं।राष्ट्रमंडल के लगभग सभी देशों में भर्ती की प्रक्रिया बदल चुकी है। क्या भारत चयन प्रक्रिया में बदलाव करेगा? क्या भारत दूसरे सक्षम देशों से इस मामले में मदद लेगा?
इस विशाल राष्ट्र में जहां नागरिक और प्रबंधन लोकाचार विश्व के अन्य राष्ट्रों से भिन्न है, हमें अपने अनुरूप बदलाव आयोगों में करने पड़ेंगे। परीक्षा प्रारूपों को बुनियादी रूप से बदलना होगा। लिखित परीक्षाओं और साक्षात्कार के दौरान मनोविज्ञान संबंधी प्रश्नों का भी समुचित समावेश करना होगा, ताकि हम कुछ हद तक यह सुनिश्चित कर सकें कि उत्तीर्ण होने वाले युवा मानसिक रूप से अपने लोक सेवा पदों की मर्यादा का ईमानदारी से निर्वाह कर सकेंगे।
ये लोक सेवक [राजनीतिज्ञ नही ] कई बार कर्मठता के साथ काम करते हैं, लेकिन उनके मानकों और निर्देशक तत्वों में बदलावों की जरूरत है। उन्हें ज्यादा उत्तरदायी बनाना जरूरी हो गया है। लोक सेवा आयोग अपनी वार्षिक सारणी बनाते हैं, लेकिन आमतौर पर ये सारणियां महज औपचारिकता बनकर रह जाती हैं। राजनीति का दबाव इन्हें बदलने पर मजबूर कर देता है |भारत में लोक सेवा आयोगों पर जनता का विश्वास धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। इसके लिए सीधे-सीधे केंद्र और राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं। लोक सेवा आयोगों के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति संविधान में वर्णित तो है, लेकिन उनकी योग्यताओं और चयन पद्धति के विषयक निर्देश नहीं हैं। फलस्वरूप राजनीति और नौकरशाही हावी हैं। आज केंद्र और राज्य सरकारें भी लोक सेवा आयोगों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं, क्योंकि इनका तमाम बजट वही देती हैं। वैसे लोक सेवा आयोग सरकारों के अनुबंध में नहीं हैं, बल्कि स्वतंत्र चयनकर्ता हैं, जिसका स्पष्ट वर्णन संविधान में है। यदि आप खुद नौकरशाह है, तो संविधान की माने, इससे सुधार की शुरुआत हो सकती है |

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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