- अभिमत

सावधान ! आपकी निजता खतरे में है

सावधान ! आपकी निजता खतरे में है
इजरायल की कंपनी एन एस ओ के इस दावे के बाद कि “वह इस सॉफ्टवेयर [पेगासस] को केवल सरकारी एजेंसियों को बेचती है।भारत की राजनीति में मचने वाले बवंडर को कोई रोक नहीं पायेगा | इस साफ्टवेयर के माध्यम से अनेक भारतीयों के मोबाइल फोन पर अवैध तरीके से निगरानी सॉफ्टवेयर डाला गया है |इस कारगुजारी ने देश के डेटा संरक्षण और निजता संबंधी कानूनों को लेकर लंबे समय से चली आ रही दिक्कतों को एक नया आयाम दिया है और वे समस्याएं नए सिरे से सामने आ गई हैं, जिनका हल खोजने की कवायद हम अब तक करते रहे हैं । वैसे यह कलई तब खुली जब फेसबुक के अनुषंगी इंस्टैंट मेसेंजर व्हाट्सऐप ने इजरायली कंपनी एनएसओ पर अमेरिका की एक अदालत में मुकदमा किया । इस मुकदमें में उसका कहना है कि एन एस ओ कंपनी ने गुप्त रूप से पेगासस नामक निगरानी सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करके संक्रमित मोबाइल फोनों में से लगभग हर प्रकार की जानकारी को दूसरी जगहों पर भेजा। तकनीकी जानकारों के अनुसार इस सॉफ्टवेयर को व्हाट्सऐप के माध्यम से केवल एक मिस्ड कॉल देकर किसी फोन पर स्थापित किया जा सकता है। माना जा रहा है कि दुनिया भर में लगभग १५०० लोग पेगासस से संक्रमित हुए हैं। व्हाट्सऐप का दावा है कि यह संक्रमण अप्रैल-मई २०१९ में हुआ और तब से अब तक उसने इस जोखिम को समाप्त कर दिया है। इस तर्क के मुकदमे पर जो प्रभाव हो, परन्तु भारत जैसे देश के लिए यह एक गम्भीर बात है |
एन एस ओ इस दावे के बाद कि वह इस सॉफ्टवेयर को केवल सरकारी एजेंसियों को बेचती है। इसके बाद मामला और अधिक जटिल हो गया है। एन एस ओ के उपभोक्ताओं की सूची देखकर भी यही लगता है कि उनमें से अधिकांश सरकारें हैं। पेगासस सॉफ्टवेयर और उससे जुड़ी निगरानी सेवाएं बहुत महंगी हैं और उन्हें अन्य देशों के साथ मैक्सिको और मिस्र की सरकार ने भी खरीदा है। जिन भारतीयों को इसका निशाना बनाया गया है उनमें से कई जाने माने मानवाधिकार कार्यकर्ता, अधिवक्ता, पत्रकार और राजनेता हैं। चूंकि यही वह अवधि थी जब भारत में आम चुनाव हो रहे थे और जिनको निशाना बनाया गया उनमें से कई विपक्षी विचारों के या सरकार के खिलाफ खड़े होने वाले लोग हैं इसलिए इस विषय में अटकलों का दौर शुरू हो गया है और यह अटकलें कभी भी बवंडर में बदल सकती हैं |

अब भारत सरकार का दावा और भी चौकाने वाला है कि व्हाट्स ऐप ने इस संवेदनशीलता को लेकर खुलकर बात नहीं की और गत मई में देश की कंप्यूटर आपात प्रतिक्रिया टीम तथा अन्य सरकारी एजेंसियों को इस सुरक्षा मसले की जानकारी देते हुए उसने तकनीकी शब्दावली इस्तेमाल की। सरकार ने इसकी जांच के लिए दो संसदीय समितियां गठित की हैं। अमेरिका में सुनवाई के दौरान इस विषय में और मालूमात सामने आएंगी। भारतीय नागरिकों को निशाना बनाने और चोरी छिपे पेगासस सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करने वाले ने यकीनन भारतीय कानून तोड़ा है। अब तक ऐसी किसी सरकारी एजेंसी का पता नहीं लगा है जिसके बारे में कहा जा सके कि यह उसने किया और किसके कहने पर और क्यों किया ? यदि यह काम सरकारी एजेंसी ने नहीं किया तो निजी या विदेशी एजेंसियों ने कानून है। सरकारी एजेंसियों से तो हमेशा अपेक्षा यही रहती है कि वे उच्चस्तर पर ऐसी निगरानी के लिए समुचित इजाजत लेंगी ।वैसे भी उन्हें निजता के ऐसे उल्लंघन के पहले पूरी जानकारी अनिवार्य है |

इससे किसी को इंकार नहीं है कि सरकार ने निजता संरक्षण कानून बनाने में देरी की। अगर वह होता तो इस अपराध को बेहतर परिभाषित किया जा सकता और उचित दंड की घोषणा की जा सकती। सर्वोच्च न्यायालय ने अगस्त २०१७ में कहा था कि निजता मूल अधिकार है। इसके बाद सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीएन श्रीकृष्णा की अध्यक्षता वाले आयोग ने निजी डेटा संरक्षण निजता कानून का मसौदा बनाया जिसे जुलाई २०१८ में जारी किया गया। तब से अब तक संसद ने अनेक कानून पारित किए लेकिन यह मसौदा पड़ा रहा। ऐसे कानून के अभाव में यह परिभाषित कर पाना मुश्किल है कि नागरिकों की ऐसी निगरानी कौन सी एजेंसी कब कर सकती है।

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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