प्रतिदिन
उल्टी हो गई सब तरकीबें, राष्ट्रपति शासन का ऐलान हुआ
कुर्सी के वास्ते सबने क्या – क्या नहीं किया ? महारष्ट्र को सिद्धांत हीनता ने फिर से चुनाव के मुहाने पर ला पटका है |राष्ट्रपति शासन कब तक रहेगा कहना मुश्किल है | उध्दव ठाकरे का शिव सेना का मुख्यमंत्री बनाने सपना चकनाचूर हो गया | देवेन्द्र फडनवीस या यूँ कहे कि भाजपा का जोर नहीं चला | सारी सियासत को मुट्ठी में रखने वाले शरद पंवार को दाव लगाने का मौका नहीं मिला | कांग्रेस को तो हर कीमत पर आलोचना ही करनी थी, सो कर रही है | भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस और शिव सेना, सभी “सिध्दांत हीन कुरसी परस्त” जमावड़े साबित हुए | ये सारे राजनीतिक दल अपने मूल दर्शन से हटकर समझौते करने को आमादा थे | इनमे से किसी को यह चिंता नहीं है कि उस मतदाता का सामना कैसे करेंगे जिसने इन्हें किसी सिध्दांत के कारण मत दिए थे | सबसे ज्यादा आलोचना भाजपा की हो रही है, शिवसेना उस पर लगातार वादाखिलाफी का आरोप लगा रही है | यही स्थिति अब भाजपा की झारखंड में हो रही है | वैसे देश में सिध्दांत को परे रखकर बेमेल गठ्बन्धन बनाने की कलगी उसी के सिर में काश्मीर से लगी है | महाराष्ट्र में भी उसने शरद पंवार से समर्थन की उम्मीद बाँधी थी | इस सारे गुणाभाग का असर मुम्बई महानगर पालिका पर भी होगा, जहाँ वो शिव सेना के साथ है |
एन डी ए के एक और घटक लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है।लोजपा ८१ में से ५० सीटों पर चुनाव लड़ेगी। प्रत्याशियों की पहली सूची जारी हो गई। झारखंड में ३० नवंबर ७ दिसंबर, १२ दिसंबर, १६ दिसंबर और २० दिसंबर को पांच चरणों में मतदान होना है। नतीजे २३ दिसंबर को आएंगे। झारखंड विधानसभा का कार्यकाल ५ जनवरी २०२० को खत्म होगा। वहां कुल ८१ सीटें हैं, बहुमत के लिए ४१ का आंकड़ा जरूरी है। इस कहानी में भी लोजपा ने भाजपा से संथाल परगना के जरमुंडी विधानसभा समेत ६ सीटों की मांग की थी, पर भाजपा ने इन सीटों पर अपना प्रत्याशी उतार दिया | यहाँ भी भाजपा की वादाखिलाफी की बात कही जा रही है |
नई उम्र के कुछ युवा साथी फोन पर राष्ट्रपति शासन क्यों ? समझना चाहते हैं | उनके लिए जानकारी, जब भारत के राष्ट्रपति को लगता है कि कोई राज्य सरकार संविधान के अनुसार काम नहीं कर रही है या फिर वहां सरकार गठन में कोई समस्या आ रही है तो राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 356 राष्ट्रपति को राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने का अधिकार देता है। यदि महामहिम राष्ट्रपति इस तर्क से संतुष्ट हैं कि राज्य सरकार संविधान के प्रावधानों के मुताबिक काम नहीं कर रही है तो कैबिनेट की सहमति राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है।ऐसी स्थिति में सत्ता की बागडोर राज्यपाल के हाथ में होती है। राज्यपाल सदन को ६ महीने की अवधि के लिए निलंबित भी रख सकते हैं। ६ महीने के बाद भी यदि कोई पार्टी बहुमत साबित नहीं कर पाए तो पुन: चुनाव की सिफारिश की जाती है। भारत में अनुच्छेद ३५६ का दुरुपयोग ज्यादा हुआ है। ज्यादातर मामलों में ऐसी परिस्थिति तब बनती है जब केन्द्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकारें होती हैं। जैसी अभी हैं |इस का पहली बार ३१ जुलाई १९५७ में प्रयोग किया गया था, जब केरल में कम्युनिस्ट सरकार बर्खास्त की गई थी।६ दिसंबर १९९२ को अयोध्या के विवादित ढांचे के विध्वंस के बाद चार राज्य सरकारों को बर्खास्त किया गया था। इनमें यूपी की कल्याणसिंह सरकार, मध्यप्रदेश की सुंदरलाल पटवा सरकार, राजस्थाबन की भैरोंसिंह शेखावत सरकार और हिमाचल प्रदेश की शांता कुमार सरकार को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने बर्खास्त कर दिया था।
इस बार महाराष्ट्र में सारे नियम सिद्धांत छोड़ने के बाद भी सरकार नहीं बन सकी | अब आगे क्या होगा ? राष्ट्रपति जाने |