अजित पवार के उपमुख्यमंत्री बनने के दो दिन बाद ही 70 हजार करोड़ रुपए के सिंचाई घोटाले से जुड़े नौ मामलों की फाइल बंद कर दी गई है। यह घोटाला विदर्भ क्षेत्र में हुआ था और महाराष्ट्र का एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) इसकी जांच कर रहा था। हालांकि, यह साफ नहीं है कि बंद किए गए इन 9 मामलों में अजित पवार आरोपी थे या नहीं। न्यूज एजेंसी एएनआई ने एसीबी के सूत्रों के हवाले से बताया कि सोशल मीडिया पर वायरल हुई चिट्ठी में जिन मामलों का जिक्र है, वे अजित पवार से जुड़े नहीं हैं। यह भी कहा गया है कि मामले सशर्त बंद किए गए हैं। यानी कोई नई जानकारी सामने आने पर इन्हें जांच के लिए दोबारा खोला जा सकता है।
#Breaking #EXCLUSIVE 1st on TIMES NOW | @AjitPawarSpeaks gets clean chit from ACB in irrigation scam. pic.twitter.com/3UyL1ADkAn
— TIMES NOW (@TimesNow) November 25, 2019
यह मामला उस वक्त का है, जब राज्य में कांग्रेस और राकांपा की गठबंधन सरकार थी। 1999 और 2014 के बीच अजित पवार इस सरकार में अलग-अलग मौकों पर सिंचाई मंत्री थे। आर्थिक सर्वेक्षण में यह सामने आया था कि एक दशक में सिंचाई की अलग-अलग परियोजनाओं पर 70 हजार करोड़ रुपए खर्च होने के बावजूद राज्य में सिंचाई क्षेत्र का विस्तार महज 0.1% हुआ। परियोजनाओं के ठेके नियमों को ताक पर रखकर कुछ चुनिंदा लोगों को ही दिए गए।
इस मामले में 3 हजार टेंडर की जांच हुई थी। सिंचाई विभाग के एक पूर्व इंजीनियर ने तो चिट्ठी लिख कर ये भी आरोप लगाए थे कि नेताओं के दबाव में कई ऐसे डैम बनाए गए, जिनकी जरूरत नहीं थी। इंजीनियर ने ये भी लिखा था कि कई डैम कमजोर बनाए गए।
2014 में महाराष्ट्र में सत्ता में आने से पहले चुनाव प्रचार के समय भाजपा ने सिंचाई घोटाले को जबरदस्त मुद्दा बनाया था।