- अभिमत

राजनीतिक “गॉड फादरों” का चटकता तिलिस्म

प्रतिदिन
राजनीतिक “गॉड फादरों” का चटकता तिलिस्म
कुछ घंटे बाद आनेवाला है, सुप्रीम कोर्ट का फैसला “फ्लोर टेस्ट “ कब हो ? यह एक महत्वपूर्ण बिंदु होगा | जनता की अदालत का फैसला आ गया है | जनता की अदालत का फैसला है “ राजनीति में गॉड फादर संस्कृति का तिलिस्म चटक गया है और कुछ साल में राजनीतिक दलों का नया स्वरुप सामने आएगा |” इस तिलिस्म के चटकने की शुरुआत कांग्रेस से हुई फिर शिव सेना और अब राष्ट्रवादी कांग्रेस का तिलिस्म टूट रहा है | २३ नवम्बर के “प्रतिदिन” में इस आशय के संकेत पर मित्र अशोक चतुर्वेदी की टिप्पणी के बाद, इस तिलिस्म के एक और हिस्से की नुमाइश |
चर्चित किताब ‘ऑन माई टर्म्स’ के लेखक शरद पवार हो, या बाला साहेब ठाकरे की विरासत संभालने वाले उध्दव ठाकरे हमेशा अपनी शर्तों पर राजनीति करते आये हैं | उनके साथ समर्थक साम-दाम से ज्यादा, दंड और भेद से जुड़े हैं | इस बार सारे विधायकों को गुप्त स्थान पर रखना या सबके मोबाईल रखवाना कोई बड़ी बात नहीं है | नियुक्ति से पहले त्यागपत्र, गोपनीय फ़ाइल, भयादोहन, भ्रष्टाचार के अवसर और फिर उसकी सी बी आई जाँच जैसे हथकंडे भारतीय राजनीति के अंग है| इन खेलों को सारे राजनीतिक दल अपने-अपने तरीके से खेलते हैं और इस सब से उस दल में तैयार होते हैं, “गॉड फादर” |
इस बार के महाराष्ट्र खेल का सबसे बड़ा नाम शरद पवार है | पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस| इस पार्टी के नेता अजित पवार का रातोंरात बगावत कर भाजपा से हाथ मिलाते हैं तो याद आती है, उनके चाचा शरद पवार की ४१ वर्ष पहले की कहानी| जब वह कांग्रेस के दो धड़ों द्वारा बनाई गई सरकार गिराकर राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने थे. पवार ने वर्ष १९७८ में जनता पार्टी और पीजेन्ट्स वर्कर्स पार्टी के गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया था, जो दो वर्ष से भी कम समय तक चली थी| इस बार भी वह राज्य में कांग्रेस और शिवसेना से हाथ मिलाकर इसी तरह का गठबंधन तैयार करने का प्रयास कर रहे थे, अजित पवार ने उनका तिलिस्म चटका दिया |अजित ने शनिवार सुबह उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली, जिस पर शरद पवार ने कहा कि बीजेपी को समर्थन देने के निर्णय का उन्होंने समर्थन नहीं किया है और यह उनके भतीजे का निजी फैसला है| वास्तव में साल १९७८ में अपनी पार्टी बनाकर उसे एक दशक तक चलाने के पवार के निर्णय के कारण राजनीतिक हलकों में उन्हें प्रभावशाली नेता कहा जाने लगा|
पवार ने अपनी किताब ‘ऑन माई टर्म्स’ में लिखा है कि वर्ष १९७७ में आपातकाल के बाद के चुनावों में राज्य और देश में इंदिरा विरोधी लहर से कई लोग स्तब्ध थे| पवार के गृह क्षेत्र बारामती से वीएन गाडगिल कांग्रेस की टिकट से हार गए थे | इंदिरा गांधी ने जनवरी १९७८ में कांग्रेस का विघटन कर दिया और कांग्रेस (एस-सरदार स्वर्ण सिंह की अध्यक्षता वाली) से अलग होकर कांग्रेस (इंदिरा) का गठन किया| पवार कांग्रेस (एस) के साथ बने रहे और उनके राजनीतिक मार्गदर्शक यशवंतराव चव्हाण भी इसी पार्टी में थे| इस बार पवार का भतीजा उनके साथ नहीं है |
यही हाल शिव सेना का है अपने पिता को दिए वचन के निर्वाह में अपने बेटे आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनने का स्वप्न देखने वाले उध्दव ठाकरे को सारे शिव सैनिकों की मर्जी कहाँ पता है ? हर क्षण अंदेशे में हैं, शिव सेना सुप्रीमो |
इन चटकते दरकते तिलिस्मों में अभीभी नेताजी, बुआ जी और भाईसाहबो के चेहरे छिपे है | इन चेहरों को समझना चाहिए जब “लौह पुरुष” और “आयरन लेडी” जैसी ख्याति राजनीतिक घटाटोप में श्री विहीन हो सकते है तो पर लगा ‘गॉड फादर” का तिलिस्म तो भय के रंग से लोगों ने रंगा है | अब रंग उतर रहा है | यह रंग उतरना ही व्यवस्था परिवर्तन का पहला पायदान है |

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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