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डॉ. अंबेडकर की पुण्यतिथि 2019 | डा. आंबेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस

हमारे संविधान को तैयार करने में डॉ.भीमराव रामजी आंबेडकर की बड़ी भूमिका थी। इसी वजह से वह संविधान निर्माता के तौर पर जाने जाते हैं। वह बड़े समाज सुधारक और विद्वान थे। उनका निधन 6 दिसंबर, 1956 को दिल्ली स्थित उनके घर पर हुआ था यानी आज उनकी पुण्यतिथि है। उनकी पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

डॉ. भीम राव अंबेडकर कि पुण्यतिथि प्रत्येक साल उन्हें 06 दिसंबर को श्रद्धांजलि और सम्मान देने हेतु मनाया जाता है. इस साल 64वां डॉ अंबेडकर महापरिनिर्वाण दिवस मनाया जा रहा है.

परिनिर्वाण क्या है?
परिनिर्वाण बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धांतों और लक्ष्यों में से एक है। इसका वस्तुत: मतलब ‘मौत के बाद निर्वाण’ है। बौद्ध धर्म के अनुसार, जो निर्वाण प्राप्त करता है वह संसारिक इच्छाओं और जीवन की पीड़ा से मुक्त होगा और वह जीवन चक्र से मुक्त होगा यानी वह बार-बार जन्म नहीं लेगा।

कैसे हासिल होता है निर्वाण?
निर्वाण हासिल करना बहुत मुश्किल है। कहा जाता है कि इसके लिए किसी को बहुत ही सदाचारी और धर्मसम्मत जीवन जीना होता है। 80 साल की आयु में भगवान बुद्ध के निधन को असल महापरिनिर्वाण कहा गया।

डॉ. आंबेडकर ने कब अपनाया था बौद्ध धर्म?
संविधान निर्माता डॉ.भीमराव आंबेडकर ने बरसों तक बौद्ध धर्म का अध्ययन किया था। उसके बाद 14 अक्टूबर, 1956 को उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया था। उनके साथ उनके करीब 5 लाख समर्थक भी बौद्ध धर्म में शामिल हो गए थे।

उनका अंतिम संस्कार कहां हुआ?
उनके पार्थिव अवशेष का अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म के नियमों के मुताबिक मुंबई की दादर चौपाटी पर हुआ। जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया, उसक जगह को अब चैत्य भूमि के तौर पर जाना जाता है।

उनकी पुण्यतिथि महापरिनिर्वाण दिवस के तौर पर क्यों मनाई जाती है?
दलितों की स्थिति में सुधार लाने के लिए उन्होंने काफी काम किया और छूआछूत जैसी प्रथा को खत्म करने में उनकी बड़ी भूमिका थी। इसलिए उनको बौद्ध गुरु माना जाता है। उनके अनुयायियों का मानना है कि उनके गुरु भगवान बुद्ध की तरह ही काफी प्रभावी और सदाचारी थे। उनका मानना है कि डॉ. आंबेडकर अपने कार्यों की वजह से निर्वाण प्राप्त कर चुके हैं। यही वजह है कि उनकी पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस या महापरिनिर्वाण दिन के तौर पर मानाया जाता है।

कैसे मनाते हैं महापरिनिर्वाण दिवस?
आंबेडकर के अनुयायी और अन्य भारतीय नेता इस मौके पर चैत्य भूमि जाते हैं और भारतीय संविधान के निर्माता को श्रद्धांजलि देते हैं।

आइए आज कुछ जानते हैं…

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था. उन्हें साल 1990 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था.

उन्होंने जीवन भर दलितों और अन्य सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के अधिकारों हेतु संघर्ष किया. उन्हें भारतीय संविधान के पिता के रूप में भी जाना जाता है. अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव जैसी सामाजिक बुराइयों को मिटाने के उनके प्रयास उल्लेखनीय थे.

बाबा साहेब ने साल 1956 में ‘बौद्ध धर्म’ अपना लिया था. लाखों दलितों ने भी उनके साथ ही ‘बौद्ध धर्म’ अपना लिया था. उनका मानना था कि मानव जाति का उद्देश्य खुद में सतत सुधार लाना है.

डॉ. भीमराव अंबेडकर को 29 अगस्त 1947 को संविधान की प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया था. उनकी अध्यक्षता में 02 साल 11 महीने और 18 दिन के बाद संविधान बनकर तैयार हुआ था.

अंबेडकर के पिता भारतीय सेना में सूबेदार थे. उनका परिवार साल 1894 में उनकी सेवानिवृत्ति के बाद सतारा चला गया था. कुछ ही समय बाद, भीमराव की माँ का निधन हो गया था.

बाबा साहेब अंबेडकर का परिवार महार जाति का था, जिसे अछूत माना जाता था. इस कारण उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव सहन करना पड़ता था.

उन्होंने साल 1906 में नौ साल की लड़की रमाबाई से ‘बाल विवाह’ के प्रचलन के कारण शादी की थी. उन्होंने रमाबाई की मृत्यु के बाद सविता से दूसरा विवाह किया था.

बाबा साहेब नौ भाषाओं के जानकार थे. इन्हें देश विदेश के कई विश्वविद्यालयों से पीएचडी की कई मानद उपाधियां मिली थीं. इनके पास लगभग 32 डिग्रियां थीं.

उन्होंने साल 1907 में मैट्रिक पास की और फिर उन्होंने साल 1908 में एलफिंस्टन कॉलेज में प्रवेश लिया. वे इस कॉलेज में प्रवेश लेने वाले पहले दलित छात्र थे.

उन्होंने साल 1912 में बॉम्बे यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स और पॉलिटिकल साइंस से डिग्री ली. वे साल 1913 में एमए करने के लिए अमेरिका चले गए. तब उनकी उम्र मात्र 22 साल थी. अंबेडकर साहब की 06 दिसंबर 1956 को मृत्यु हो गई.

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