- अभिमत

ये सुविधाएँ और नागरिक सम्मान

प्रतिदिन :
ये सुविधाएँ और नागरिक सम्मान
क्या यह दुर्भाग्य नहीं है कि देश में किसी भी नीति की अंतिम सराहना का आधार यह होता है कि वह चुनावी जीत दिलाने में वो कितनी सक्षम है । मध्यप्रदेश छतीसगढ़ और राजस्थान में मुफ्त बन्दरबांट का जो फार्मूला पिछली सरकारों ने चलाया और वर्तमान सरकारें चला रही हैं उससे नागरिक सम्मान (Civilian honor) कितना सुरक्षित है? यह इसी दुर्भाग्य से पैदा प्रश्न है| दिल्ली में आम आदमी पार्टी (Aap) के पुनर्निर्वाचन के बाद देश भर के राजनेताओं, खासतौर पर राज्यों के नेताओं के सामने यह बात रेखांकित हुई होगी कि बिजली सब्सिडी की नीति कितनी उपयोगी साबित हो सकती है? राज्य के संसाधनों पर समान हक की बात ठीक है, पर उसकी कीमत कौन चुकाएगा इसका ध्यान रखना भी जरूरी है | स्वीत्झरलैंड (Switzerland) के नागरिको से देश के नागरिकों और सरकार दोनों को सीखना चाहिए | वहाँ के नागरिकों अपनी नागरिक स्वतंत्रता के बदले किसी भी चीज को मुफ्त लेने से इंकार कर दिया | भारत में ऐसे इंकार दिखाई नहीं देते | ये लालच वोट बैंक में बदलते हैं और शायद आगे भी …….!

कई योजनाएं चल रही कुछ अभी प्रस्ताव के स्तर पर हों, परंतु इनसे आने वाले कष्ट का अंदाजा लगाया जा सकता है। जैसे बिजली का उदहारण लें | दिल्ली में हर परिवार को हर माह२०० यूनिट तक बिजली नि:शुल्क दी जाती है और ४०० यूनिट तक की बिजली पर ५० प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है। कुछ अन्य राज्य भी बिजली सब्सिडी देने की शुरुआत कर चुके हैं| इस बीच पश्चिम बंगाल में जहां अगले वर्ष विधानसभा चुनाव में करीबी मुकाबला दिख सकता है, वहां इस वर्ष के बजट में तोहफों की बहार है| साडी,स्कूटर, कम्प्यूटर इत्यादी के बाद अब ये नये फार्मूले है जिनमे रसोई गैस (LPG), बिजली पट्टे आदि है | एक रसोई गैस सिलिंडर की कीमत दिल्ली चुनाव के बाद एक दम १५० रूपये बढ़ाना मुफ्त के माल खाने का जुरमाना है | ऐसे की जुर्माने मुफ्त के बदले करदाताओं से सरकारें गाहे- बगाहे वसूल ही लेती है | कभी यातायात के नाम पर कभी शिक्षा या स्वास्थ्य के लिए सेस लगाकर |

इस सूची में स्वास्थ्य सुविधाओं और प्राथमिक शिक्षा (Primary education) को वरीयता प्राप्त है। बिजली सब्सिडी (Electricity subsidy) का वादा ध्यान आकृष्ट करता है और इससे चुनावी नारे गढऩे में आसानी रहती है, जबकि ऐसी सब्सिडी में कोई राजनीतिक विशिष्टता नहीं है। यदि एक पार्टी १०० यूनिट तक नि:शुल्क बिजली का वादा करती है तो उसका प्रतिद्वंद्वी दल२०० यूनिट तक बिजली देने का वादा कर सकता है। इस तरह का लोकलुभावनवाद हमेशा ऐसी प्रतिस्पर्धा को जन्म देता है जहां नीचे गिरने की होड़ होती है। इसका दीर्घकालिक लाभ किसी को नहीं मिलता। जब इसकी तुलना कड़ी मेहनत से उत्पादक श्रम शक्ति तैयार करने से किया जाता है तो इस तरह की रियायतें सार्वजनिक धन के अपव्यय से ज्यादा नहीं लगतीं।दिल्ली की वित्तीय स्थिति तो कर्जग्रस्त (indebted) पश्चिम बंगाल जैसे अन्य कई राज्यों से बेहतर है। ऐसे में रियायतें दिल्ली पर बोझ नहीं बनीं वे अन्य राज्यों में राजकोषीय कठिनाई पैदा कर रही हैं। जैसे मध्यप्रदेश में पिछली सरकार की रियायतों को बंद करने के स्थान पर सरकार ने कुछ और रियायतों के पैकेज बनाये पर खजाना खाली है| इस लालच के कारण नागरिक का सम्मान और प्रतिष्ठा तो गिरती ही है | सरकारों पर वादा खिलाफी से लेकर अकर्मण्यता के आरोप भी लगते हैं | सबसे ज्यादा कष्ट में वे नागरिक होते हैं जो ईमानदारी से कर का भुगतान करते हैं | राज्य कल्याणकारी हो सबके लिए | मुफ्तखोरी और प्रलोभन (Freebies and inducements) की प्रवृत्ति पर नियंत्रण किया जाना चाहिए|

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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