प्रतिदिन :
हे ! शिव भारत को आपका सहारा चाहिए
आज शिवरात्रि है| कहते है, आज भगवान शिव से की गई प्रार्थना निष्फल नहीं होती | मेरे साथ बहुत से भारतवासी आज अपने लिए कम, अपने देश के लिए कैलाशवासी भगवान शिव से यह मांग रहे हैं कि हे! भोले नाथ अपने भोले स्वरूप को त्याग कर अपने पिनाकी स्वरूप में आइये और अपने पिनाक की टंकार से देश को जगाकर पुन: सत्यम शिवम् सुन्दरम की स्थापना कीजिये| आज देश के खेतों में में किसान, सीमा पर जवान, बाज़ार में व्यापारी, न्याय के मन्दिर में न्याय और सडक पर बेरोजगार नौजवान सिसक रहे हैं |
वैसे इस कथा का भारत की वर्तमान दशा से कोई सम्बन्ध नहीं है| कथा याद आ गई ,तो स्मरण कर रहा हूँ| वैसे भारत में इन दिनों बात-बेबात पर बहस, इधर के सन्दर्भ उधर जोड़ने का प्रचलन है | ऐसे में कथा का साम्य कोई इधर-उधर जोड़े तो मेरा कोई दोष नहीं है | कथा यूँ है, अंधकासुर ने त्रिलोकी का उपभोग करते हुए इन्द्रलोक को जीत लिया और वह इन्द्र को पीड़ित करने लगा। राहू-केतु के साथ अंधकासुर एकमात्र ऐसा दैत्य था जिसने अमृतपान कर लिया था। अपनी शक्ति और विकराल स्वरुप के कारण यह दैत्य इतना अंधा हो चुका था कि इसे अपने समक्ष कोई दिखाई ही नही देता था। इसी अहम की अन्धता के कारण अंधकासुर हद से बाहर जाकर भी कुछ न कुछ प्राप्त करने का यत्न करने लगा | ना चाहकर भी भगवान शंकर के गणों को, फिर भगवान शंकर को धर्म की रक्षा करने के लिए युद्ध करना पड़ा। शास्त्रानुसार अंधकासुर ने देवासुर संग्राम मे भगवान विष्णु को बाहु युद्ध मे परास्त कर दिया। इस पर भगवान शंकर ने युद्ध कर अंधकासुर को परास्त कर उसे अपने त्रिशूल पर लटका दिया। अंधकासुर के हजारों हाथपांव आंखें और अंग आकाश से पृथ्वी पर गिर रहे थे। भयंकर युद्ध मे भगवान शंकर के ललाट से गिरे पसीने से एक विकराल रूपधारी का जन्म हुआ जिसने पृथ्वी पर गिरे अंधकासुर के गिरे रक्त व अंगों को खाना शुरू कर दिया अंधकासुर का रक्त व अंग खाकर ही वो स्वयं अंधकासुर जैसा बन गया परंतु जब वध उपरांत भी अंधकासुर के विकराल रूप की भूख शांत नही हुई तब वह भगवान शंकर के सम्मुख अत्यन्त घोर तपस्या में संलग्न हो गया। तब भोले भंडारी ने उसकी तपस्या से संतुष्ट होकर उसे वरदान देने की इच्छा प्रकट की। तब उस विकराल प्राणी ने शिवशंकर से तीनों लोकों को ग्रस लेने का वरदान प्राप्त किया। वरदान स्वरूप अंधकासुर का विकराल विशाल शरीर अब एक वस्तु का आकार ले चुका था। व विकराल वस्तु आकाश को अवरुद्ध करता हुई पृथ्वी पर आ गिरी ।तब भयभीत हुए देवता और राक्षसों द्वारा वह स्तंभित कर दी गई। उसे वहीं पर औंधे मुंह गिराकर सभी देवता उस पर विराजमान हो गए। इस प्रकार सभी देवताओं द्वारा उस पर निवास करने के कारण वह वस्तु रूप विकराल पुरुष वास्तुपुरुष नाम से विख्यात हुआ।
ऐसे ही वास्तु पुरुष इस देश में जगह-जगह स्थापित हो रहे हैं | देश काल और परिस्थिति का पूरा दुरूपयोग जारी है | किसी को सूझ नहीं रहा है | निंदा और आलोचना कीर्तन और भजन का स्थान ले रही है | कोई किसी को फूटी आँख़ देखना पसंद नहीं कर रहा है | सब दूसरे के दोष देखने में व्यस्त हैं | अपयश को कीर्तिमान बताने की परम्परा चल रही है, उनके अपयश को अन्धकार बता अपनी मोमबत्ती से देश में उजाला करने की कोशिश हो रही है | अब चर्वाक को भी मात करने वाली मुफ्त पद्धति का विकास हो रहा है |जिसकी जो समझ आ रहा है कर रहा है कोई भी अपने कर्तव्य की पूर्ति नहीं कर रहा है |
देश को अब आपके भरोसे छोड़ना ही विकल्प दिखता है, कुछ आपको तीसरा नेत्र खोलने की सलाह दे सकते है, पर ऐसा मत कीजिये | पिनाक की टंकार से ही काम चल जायेगा |
हे ! शिव भारत को आपका सहारा चाहिए
श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com