उत्तर प्रदेश में नए जातीय समीकरण की बिसात बिछती दिख रही है. योगी सरकार द्वारा गठित अति पिछड़ा सामाजिक न्याय समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है. रिपोर्ट में ओबीसी और एससी/एसटी आरक्षण कोटे में बंटवारे की सिफारिश की गई है. इस पर अंतिम फैसला सीएम योगी आदित्यनाथ को लेना हैं. बहरहाल, अगर मुख्यमंत्री योगी प्रदेश में रिपोर्ट की सिफारिशें अगर प्रदेश में लागू करते हैं तो इसका सीधा असर यूपी की सरकारी नौकरियों पर दिखाई देगा.
दरअसल समिति ने अपनी रिपोर्ट में पिछड़ा वर्ग आरक्षण को 3 हिस्सों में बांटने की सिफारिश की है. वहीं एससी/एसटी में भी दलित, अति दलित और महा दलित श्रेणी बनाकर इसे भी तीन हिस्से में बांटने की सिफारिश की है. पिछड़ा वर्ग में पिछड़ा, अति पिछड़ा और सर्वाधिक पिछड़ा के तीन वर्ग बनाने का प्रस्ताव दिया गया है. इसके तहत 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को पिछड़ा, अति पिछड़ा और सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग को 9 फ़ीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की गई है.
इसी तरह एससी/एसटी में दलित, अति दलित और महा दलित श्रेणी बनाकर बांटने की सिफारिश की है. 22 फ़ीसदी एससी/एसटी आरक्षण में दलित जातियों को 7%, अति दलित जातियों को 7% और महादलित जातियों को 8% आरक्षण देने की सिफारिश की गई है. जाहिर है नौकरियों में भी इसी अनुपात में पद इन वर्गों में बंटी जातियों के हिस्से में जाएंगे.
वहीं विपक्ष का आरोप है कि लोकसभा चुनाव से पहले ऐसी सिफारिशों का आना यह दर्शाता है कि बीजेपी जातीय समीकरण को साधने में जुटी हुई है. आरक्षण में आरक्षण के मामले में समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अनुराग भदौरिया ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी को सिर्फ एक ही काम करना है. जाति के नाम पर समाज को बांटना है. विकास की बात वह नहीं करेगी. वह बेरोजगारी, किसानों की समस्या आदि सभी मुद्दे भूल चुकी है. उसे याद दिलाना होगा. उनकी मेमोरी खत्म हो गई है.