प्रतिदिन :
बहुत सारे विरोधाभासों के बीच प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच चल रही बातचीत के ताज़ा अंक से जो कुछ निकल कर सामने आया है, वह है कि ”यह वायरस हमें आसानी से या जल्द छोड़ने वाला नहीं। यदि भारत को इससे सुरक्षित रहना है और भविष्य में होने वाली मौतों या मौत बांटने वाले वायरसों से बचना है, तो कुछ जरूरी उपाय करने ही होंगे।“ और इन उपायों में राजनीति न हो, अगर भारत का यह प्रयास समग्र राष्ट्र के लिए एक नहीं हुआ तो आने वाली पीढ़ी और समय के हम “मुजरिम”होंगे | आज़ादी के बाद देश के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती है, दुर्भाग्य राजनीति इसमें छिद्रान्वेषण से ज्यादा कुछ नहीं खोज पा रही है| मौजूद आर्थिक और मानव संसाधनों को देखते हुए कई बाधाओं के बावजूद जिस तरह से यह काम किया गया है और किया जा रहा है, में सबका सहयोग अपेक्षित है | वैचारिक मतभेद के कारण केंद्र या किसी राज्य सरकार की आलोचना इस दुष्काल से नहीं उबार पायेगी | इस संकट के बाद राष्ट्र का पुनर्निर्माण सामने खड़ा है |
इस दुष्काल से निबटने के लिए बराबर दोहराई जा रही बातों में ये ५ बातें जरूरी है | सारे राष्ट्र को इन पर एकमत होना चाहिए | १. बुनियादी स्वच्छता की आत्मघाती उपेक्षा से निपटना। ।२. औद्योगिकीकरण के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों के निरंतर दोहन को रोकना। ३.जहां-तहां थूकने की आदत पर काबू पाते हुए धार्मिक स्थलों और मनोरंजन की जगहों पर भीड़ लगाने से बचना। ४. इस उपाय के साथ सवाल भी है निरंतर हाथ धोते रहना पर यह पूछना कि हमें साफ पानी कहां से मिलेगा? ५. सबसे मह्त्वपूर्ण, पैदल चलने लायक दूरी के भीतर बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं को खोजना | इन ५ बातों में व्यक्ति, समाज, राज्य और राष्ट्र की भूमिका छिपी हैं |
याद कीजिये हमारे संविधान (Constitution) की पहली पंक्ति, जिसके सर्वोत्तम अर्थों में आज देश की संघीय व्यवस्था (Federal system) काम कर रही है। इसमें एक सांविधानिक मंजूरी निहित है। सच कहा जाए, तो सांविधानिक अनिवार्यता। केंद्र और राज्य के बीच अधिकारों और कर्तव्यों के सांविधानिक बंटवारे में कई विषय (समवर्ती सूची के रूप में संयुक्त रूप से) राज्यों के जिम्मे हैं। ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य व स्वच्छता, अस्पताल और औषधालय’ भी ऐसे ही विषय हैं।
और इससे भी अधिक प्रासंगिक पंक्ति है, “मानव, पशु या पौधों को प्रभावित करने वाले संक्रामक या घातक रोगों को एक राज्य से दूसरे राज्य में फैलने से रोकना”। यह समवर्ती सूची में शामिल है और राज्य व केंद्र, दोनों पर बाध्यकारी है। सामान्य हालात में बेशक इन विषयों के प्रति राज्य और केंद्र थोड़ी शिथिलता बरतते हों, लेकिन आज की मुश्किल स्थिति में राज्य-केंद्र अपने सांविधानिक दायित्व को जीते हुए पूरी तरह से सक्रिय हैं। सच में आज का भारत, वो भारत है जिसकी कल्पना संविधान बनाते समय की गई थी | बस, इसे साकार करना है |सब अपनी जगह काम कर रहे हैं, इसकी थोड़ी गति और बढे, आलोचना राजनीति रहित हो तो बेडा पार है |
केरल,गोवा, उड़ीसा से महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश को सीखना चाहिये | तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल को स्वविवेचन के साथ,उस हर अच्छे सुझाव का स्वागत राजनीति छोड़ कर करना चाहिए, भले ही वो भाजपा ने दिया हो या कांग्रेस ने या केंद्र का आदेश हो | यह विरोध का झंडा बुलंद करने का नहीं, देश को बचाने और बनाने का समय है | केंद्र को मुखिया की भूमिका “मुखिया मुख सो चाहिए, खान-पान को एक, पालत पोषत सकल अंग निपुन नीति विवेक” सी होनी चाहिए |
एक और ज्वलंत विषय – प्रवासी मजदूरों की दशा। इसका हल सबको सोचना चाहिये | अभी राज्यों की बड़ी जिम्मेदारी है कि लॉकडाउन में मिल रही छूट के दौरान शहरों से गांवों की ओर मजदूरों का पलायन संवेदनशीलता के साथ रोका जाए, फिर इन्हें रोजगार मिलने तक इनका योगक्षेम । इसके लिए सरकार को कुछ मुद्दों पर अपनी प्राथमिकताएं जल्द बदलनी होंगी। १. सबको साफ पानी मिले २.डॉक्टरों-नर्सों की संख्या कमसे कम तीन गुनी हो । ३. जो जहाँ है, उसे उसके नजदीक जल्दी रोजगार मिले | इस युद्ध में व्यक्ति, समाज, राज्य और राष्ट्र सभी की भूमिका है, अपने राज्य के “रथी” के रूप में नहीं देश के “महारथी” की भांति युद्ध कीजिये|
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