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मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार रोकने वाले इस क़ानून को जरूरी बनाने की बात से पलटी मार ली

दवा कंपनियों पर अक्सर आरोप लगते हैं कि वो अपनी दवाइयों की मार्केटिंग करने के लिए ऐसे हथकंडे आजमाने से भी नहीं चूकतीं, जो गैरकानूनी ही नहीं अनैतिक भी होते हैं. दावा किया जाता है कि वे डॉक्टरों और उनके परिवार वालों को महंगे-महंगे तोहफ़े देती हैं. उनके देश-विदेश में घूमने का खर्चा उठाती हैं. उनके ऐशो-आराम का इंतजाम करती हैं. ये सब इसलिए किया जाता है ताकि डॉक्टर उस कम्पनी की दवाइयों को अपने मरीजों के लिए लिखें और उनका धंधा चमक सके. ऐसे ही आरोपों को देखते हुए मई 2016 में नरेंद्र मोदी सरकार ने संसद में कहा था कि वह दवा कम्पनियों के लिए बने एथिक्स कोड को अनिवार्य करना चाहती है. लेकिन अब सरकार ने अपने इस वादे पर यू-टर्न ले लिया है.

क्या कहा था पहले सरकार ने?

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर की मानें तो 15 मई 2016 को सरकार की ओर से लोकसभा में इस बारे में बयान दिया गया था. इसमें कहा गया था कि यूनिफ़ॉर्म कोड फ़ॉर फार्मास्यूटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेस (UCPMP) का रिव्यू कर लिया गया है, अब इसे कानून का दर्जा दिया जाएगा. इससे अनैतिक कामों पर सख्ती से रोक लग सकेगी. इसके बाद, जून 2016 में राज्यसभा में तत्कालीन रसायन और उर्वरक मंत्री अनंत कुमार ने कहा,

“सरकार इस कोड को अनिवार्य करने पर विचार कर रही है. ऐसा इसलिए कि अभी की स्वैच्छिक वाली व्यवस्था से काम चल नहीं रहा है.”

मंत्री के कहने का मतलब ये था कि इस कोड की शर्तों को मानना दवा कंपनियों के लिए जरूरी नहीं है. ये दवा कंपनियों के ऊपर है कि चाहें तो मानें, चाहे तो न मानें. अनिवार्य होने पर हर दवा कम्पनी को इसके नियम-कायदे मानने ही होंगे

अब क्या कहा है संसद में?

इस बात को चार साल बीत गए. 2020 का मॉनसून सत्र आया. सरकार ने इस एथिक्स कोड को अनिवार्य तो नहीं किया, साथ ही सदन में जो कहा, उससे पता चलता है कि फ़िलहाल UCPMP को अनिवार्य बनाने की सरकार की कोई योजना भी नहीं है. 18 सितम्बर को रसायन व उर्वरक मंत्री सदानंद गौड़ा से जब राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सवाल पूछा कि सरकार ने क्या UCPMP को अनिवार्य बनाने का कोई निर्णय लिया है? सदानंद गौडा ने कहा- नहीं, ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया गया है. उन्होंने ये भी कहा,

“इस कोड के स्वैच्छिक होने से डिपार्टमेंट ऑफ फार्मास्यूटिकल दवा कंपनियों की अनैतिक हरकतों के खिलाफ कदम नहीं उठा पा रहा है.”

कोडबुक में क्या नियम बनाए गए हैं?

दवा कंपनियों के लिए यह कोड UCPMP दिसंबर 2014 में सामने आया था. ऐसा समझ लीजिए कि ये सरकार की तरफ़ से एक कोशिश थी कि अनैतिक तरीक़ों से दवाओं का प्रचार और बिक्री न हो. इस कोड में कहा गया है कि दवा कंपनियां प्रशासन से अनुमति लिए बिना किसी भी दवा का प्रचार नहीं कर सकती हैं.

 

दवाइयों के प्रचार और उनकी प्रचार सामग्रियों के बारे में और भी बहुत सी बातें इस कोडबुक में लिखी हैं. लेकिन जिस हिस्से पर सारी बहस टिकी है, हम वो आपको बताते हैं.

मेडिकल रेप्रेज़ेंटटिव्स (MR) के बारे में भी कई नियम इस कोड में हैं. एमआर वो होते हैं, जिन्हें कंपनियां अपनी दवाओं की जानकारी डॉक्टरों को देने के लिए रखते हैं. इस कोड में लिखा है कि डॉक्टर किसी खास कंपनी की ही दवा लिखें, इसके लिए MR उन्हें किसी तरह की घूस या कैश नहीं दे सकते. डॉक्टरों और उनके घरवालों के लिए तोहफ़े और मनोरंजन कार्यक्रमों के टिकट आदि का इंतज़ाम नहीं कर सकते. देश-विदेश की यात्रा के लिए टिकट या ज़रिया मुहैया कराने और होटल में रुकने का खर्चा उठाने पर भी रोक इसी कोड के जरिए लगाई गई है. लेकिन जैसा हमने पहले बताया, इन नियमों को मानना कंपनियों की इच्छा पर छोड़ दिया गया है.

एथिक्स कोड की ज़रूरत क्यों पड़ी?

पीएम नरेंद्र मोदी ने 2 जनवरी 2020 के दिन एक मीटिंग की थी. सूत्रों के हवाले से The Print में छपी ख़बर बताती हैं कि उस मीटिंग में मोदी के अलावा दवा बनाने वाली कम्पनियों के अधिकारी मौजूद थे. कौन-सी कंपनियां? जाइडस कैडिला, टॉरेंट फ़ार्मा और वॉकहार्ड जैसी नामी कंपनियां. खबर में दावा किया गया कि नरेंद्र मोदी अनैतिक तरीक़े अपनाकर अपना व्यवसाय बढ़ाने के तरीक़ों को लेकर इन दवा कम्पनियों से नाख़ुश थे. ख़बरें बताती हैं कि नरेंद्र मोदी ने दवा कम्पनियों से कहा कि मार्केटिंग के तरीक़ों का पालन करें, वरना वह कठोर क़ानून बना देंगे. मोदी ने कथित तौर पर यह भी कहा कि दवा कम्पनियाँ डॉक्टरों को महंगे तोहफ़े देती हैं. विदेश यात्रा के टिकट, महंगे फ़ोन और यहां तक कि ‘औरतों की सप्लाई’ भी की जाती है.

इस ख़बर पर काफ़ी बवाल हुआ था. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी IMA ने ख़त लिखकर नरेंद्र मोदी से पूछा था कि अगर उन्होंने ये बयान दिया है तो इस पर स्पष्टीकरण दें. नरेंद्र मोदी की तरफ़ से जवाब का तो पता नहीं चला, लेकिन ये ज़रूर जगजाहिर हो गया कि डॉक्टरों और दवा कम्पनियों की सांठगांठ सवालों के घेरे में है. और ये नरेंद्र मोदी के इस कथित बयान से हफ़्ते भर पहले आयी एक NGO की रिपोर्ट से ज़्यादा साफ़ हुआ.

इस NGO का नाम है SATHI यानी सपोर्ट फ़ॉर एडवोकेसी और ट्रेनिंग टु हेल्थ. दिसम्बर 2019 में आयी इसकी रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि MR डॉक्टरों को अपनी कम्पनी की दवाओं को बिकवाने के लिए महंगे स्मार्टफ़ोन, विदेश यात्रा और यहां तक कि औरतों की सप्लाई भी करते हैं. दावा किया गया कि MR कुछ डॉक्टरों के लिए कार तक ख़रीदते हैं. ऑनलाइन शॉपिंग के लिए वाउचर का जुगाड़ करते हैं. आदि-इत्यादि.

ख़बरें बताती हैं कि इस रिपोर्ट के बाहर आने के बाद सरकार थोड़ा सख़्त हुई. 23 दिसंबर 2019 को फार्मास्यूटिकल विभाग के सचिव पीडी वाघेला ने दवा बनाने वाली कम्पनियों के तीन संगठनों के साथ मीटिंग की. इसमें इंडियन ड्रग मैन्युफ़ैक्चरर एसोसिएशन (IDMA), इंडियन फार्मास्यूटिकल अलायंस (IPA) और ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ फार्मास्यूटिकल प्रोड्यूसर्स ऑफ़ इंडिया (OPPI) शामिल थे. इस मीटिंग में वाघेला ने संगठनों से कहा कि आप UCPMP का पालन करें, वरना क़ानून बना दिया जाएगा.

डॉक्टरों का क्या कहना है?

जनवरी 2020 में ही डॉक्टरों के एक संगठन अलायंस ऑफ़ डॉक्टर्स फ़ॉर एथिकल हेल्थकेयर ने बयान जारी करके कहा था कि विश्व भर के उदाहरण बताते हैं कि इस तरह के स्वैच्छिक एथिकल कोड कहीं काम नहीं करते. सरकार को UCPMP को जल्द से जल्द अनिवार्य बनाने की ज़रूरत है.

लेकिन बात थी कि वहीं थी. और वहीं है. दवा कम्पनियों और डॉक्टरों की कथित मिलीभगत रोकने के लिए सख्त कानून का अब भी इंतजार है.

Source: thelallantop

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