- अभिमत

सरकार, ये सब देश के लिए शुभ नहीं है

प्रतिदिन :
सरकार, ये सब देश के लिए शुभ नहीं है

कई वैश्विक और भारतीय अध्ययनों की रिपोर्ट सामने हैं | ये सब भारत में  बढ़ती बेरोजगारी, भूख, कुपोषण, स्वास्थ्य में गिरावट, काम छूटना तथा मध्य और निम्न वर्ग की चिंताओं का बढ़ना आदि को रेखांकित कर रही है| भारत का  धनी वर्ग न केवल इस संकट से अछूता रहा, बल्कि लॉकडाउन के दौरान भारतीय खरबपतियों की संपत्ति में ३५ प्रतिशत की वृद्धि के आंकड़े भी सामने आये हैं |ये देश के लिए शुभ नहीं है |
देश की लॉकडाउन से निकलती अर्थव्यवस्था में रोजगार बढ़ा है, पर इनमें मेहनताना कम है और कोई सामाजिक सुरक्षा तो है ही नहीं |आज भारत जिस धीमी वृद्धि से गुजर रहा है, वह मुनाफे से गतिशील है, न कि आमदनी से|
आम भारतीयों को उम्मीद थी कि बजट में तात्कालिक तौर पर इन चिंताओं के समाधान की कोशिश होगी| उसे पहली उम्मीद यह थी कि बहुत धनी लोगों पर कर बढ़ाकर गरीबों के विकास के लिए धन जुटाकर संपत्ति व आय का पुनर्वितरण होगा, लेकिन धनी वर्ग को छुआ भी नहीं गया|  इस बजट ने बाजार की ताकतों के जरिये सकल घरेलू उत्पादन की वृद्धि दर को बढ़ाया  है| बजट के प्रस्तावों के लिए आवश्यक धन विनिवेश सार्वजनिक संपत्ति को बेचकर, सरकारी जमीन को बेचकर, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में छूट देकर और सार्वजनिक संपत्तियों के निजीकरण से जुटाने की बात कही गई है यह  तरीका बिल्कुल अप्रभावी है क्योंकि भारतीय बाजार एकाधिपत्य में है या कुछ लोगों ने उस पर कब्जा कर लिया है |
अभी जो चल रहा उससे  कामगारों और गरीबों को कोई फायदा पहुंचाये बिना विषमताओं में बढ़ोतरी होगी| यह एक भ्रांति है कि धनी रोजगार का सृजन करते हैं| वैश्विक बाजार में टिके रहने की कोशिश में उनके द्वारा पूंजी-आधारित अत्याधुनिक तकनीकों के अपनाने से आर्थिक वृद्धि में श्रम की भागीदारी संकुचित होती जायेगी यह बढ़ती विषमता, लोकतंत्र के लिए घातक है, क्योंकि यह धनी वर्ग हमेशा अपने और सत्ताधारी दल के बीच अपवित्र गठजोड़ बनाते रहे है|
दूसरी बड़ी अपेक्षा इस बजट में शिक्षा के संदर्भ में थी| देश में ७१ प्रतिशत सरकारी और १९ प्रतिशत निजी विद्यालय अभी भी बंद हैं, जिससे गरीब छात्र शिक्षा से वंचित हैं| इसके अलावा, बहुत-से छात्र फोन, कंप्यूटर आदि नहीं होने से ऑनलाइन पढ़ाई से जुड़ नहीं पा रहे हैं.| कई बच्चों को जीविका जुटाने में भी लगना पड़ा है|
मुश्किल से ३० से ४० प्रतिशत छात्र ऑनलाइन पढ़ाई कर पा रहे हैं| जिससे धनी और मध्य वर्ग के बच्चों तथा गरीब बच्चों के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा है| यह तो अगली पीढ़ी का नुकसान है और इस तरह यह देश का साफ नुकसान है| डिजिटल शिक्षा की उपलब्धता के लिए बजट में टैबलेट, स्मार्टफोन, लैपटॉप आदि में निवेश के लिए आवंटन हो सकता था, लेकिन यह हमारे नीतिनिर्धारकों की प्राथमिकता नहीं है |
और तो और इस बार बजट में शिक्षा पर आवंटन बढ़ाने के बजाय छह हजार करोड़ रुपये से अधिक की कमी कर दी गयी है|इसे भारत की भावी पीढ़ी की आपराधिक उपेक्षा ही कहा जा सकता  है| लगभग ८० प्रतिशत साक्षरता के साथ देश आबादी के बड़े हिस्से को उस उन्नत विकास से नहीं जोड़ पा रहा है| तीसरी बड़ी अपेक्षा रोजगार के क्षेत्र में थी. यह साफ है कि जिन लोगों ने अपना रोजगार खोया है, उन सभी को मौजूदा आर्थिक वृद्धि फिर से समाहित नहीं कर सकती है|
इस कारण लौटे हुए बहुत से प्रवासी कामगार बेहद मामूली रोजगार पाने की कोशिश कर रहे हैं| मनरेगा कोई दान या केवल सुरक्षा कवच नहीं है| अर्थव्यवस्था में इसकी दो बड़ी भूमिकाएं हैं- एक, पर्यावरण की बेहतरी तथा स्थानीय स्तर पर अधोसंरचनार का विकास, और दो, मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा समेत अन्य संसाधनों को बेहतर करना|स्थानीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए दोनों भूमिकाएं अहम हैं. उम्मीद तो शहरों के लिए ऐसी योजना लाने की भी थी, पर उस पर भी चुप्पी रही| इसे चुप्पी कहें या आंकड़ों की बाजीगरी दोनों देश के लिय शुभ नहीं है |

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *