प्रतिदिन :
अवैध जहरीली शराब का धंधा रोकने के लिए देशव्यापी कानून बने
मध्यप्रदेश के दो से अधिक जिलों में पिछले साल अर्थात २०२० और इस साल की शुरुआत में जहरीली अवैध शराब पीने से मौत हुई है | वैसे देश में ऐसा कोई साल नहीं जाता, जब देश में जहरीली-मिलावटी शराब पीने से सैकड़ों लोग न मरते हों। कईयों की आंख की रोशनी चली जाती है और कुछ जीवनभर के लिये अभिशप्त जीवन जीने को बाध्य हो जाते हैं। विडंबना है कि इन हादसों का शिकार गरीब व मजदूर तबका ही होता है। ऐसा में यह प्रश्न मौजूं है पूरे देश में इसकी रोकथाम के लिए एक समान कानून क्यों नहीं है ? और इसके बनाने में अड़चन क्या है ?
देश में कहीं भी हादसा होने पर तो सरकार व पुलिस सख्ती करते नजर आते हैं। कुछ गिरफ्तारियां होती हैं, कुछ शराब की भट्टियां नष्ट की जाती हैं, लेकिन फिर जहरीली शराब का कारोबार बदस्तूर शुरू हो जाता है। ऐसा संभव नहीं कि जिन लोगों की जिम्मेदारी इस जहरीले कारोबार को रोकने की होती है, उनकी व पुलिस की जानकारी के बिना यह जहरीला धंधा फल-फूल सके। सिस्टम में लगे घुन को दूर करने की ईमानदार कोशिशें होती नजर नहीं आतीं। बहरहाल अब पंजाब सरकार ने इस दिशा में कदम उठाते हुए आबकारी अधिनियम में कड़े प्रावधान जोड़े हैं। अब पंजाब में अवैध व मिलावटी शराब बेचने से हुई मौतों के लिये दोषियों को उम्रकैद से लेकर मृत्युदंड तक की सजा दी जा सकेगी।
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक में लिये गये फैसले के अनुसार पंजाब एक्साइज अधिनियम में संशोधन के बाद अदालतों को धारा 61-ए के तहत कार्रवाई करने का अधिकार होगा तथा धारा 61 व 63 में संशोधन किया जायेगा। इसके लिये मौजूदा बजट सत्र के दौरान बिल लाया जायेगा। अवैध व मिलावटी शराब का व्यवसाय अब गैर जमानती अपराध होगा।
दरअसल, बीते वर्ष जुलाई में गुरदासपुर, अमृतसर व तरनतारन में जहरीली शराब से सौ से अधिक मौतों के बाद राज्य में आबकारी कानून सख्त करने की मांग उठी थी। सरकार उसी दिशा में आगे बढ़ी है। अब धारा 61-ए के तहत जहरीली शराब से मौत की पुष्टि होने पर अदालत निर्माता व विक्रेता को पीड़ित परिवार को पांच लाख तथा गंभीर क्षति होने पर तीन लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दे सकती है।
पंजाब सरकार के प्रस्तावित प्रावधानों में जहरीली शराब से मौत होने पर दोषी को उम्रकैद से लेकर मृत्युदंड तक की सजा और बीस लाख तक का जुर्माना हो सकता है। अपाहिज होने पर छह साल की सजा और दस लाख तक का जुर्माना हो सकता है। वहीं गंभीर नुकसान पर दोषी को एक साल तक की कैद और पांच लाख तक का जुर्माना हो सकता है। नुकसान न भी हुआ हो मगर मिलावटी शराब का आरोप साबित होने पर छह माह की कैद और ढाई लाख तक का जुर्माना हो सकता है। यहाँ प्रश्न यह है कि सारे देश में इस विषय पर एक कानून क्यों नहीं बना सकता ?
पंजाब ने तो यह भी प्रावधान किया है कि यदि मिलावटी शराब लाइसेंसशुदा ठेके पर बेची जाती है तो मुआवजा देने की जिम्मेदारी लाइसेंसधारक की होगी। जब तक आरोपी अदालत द्वारा तय जुर्माना नहीं देता तब तक वह कोई अपील भी दायर नहीं कर सकता। दरअसल, यह रोग केवल पंजाब का ही नहीं है। देश के विभिन्न भागों से जहरीली मौत से मरने की खबरें लगातार आती रहती हैं। गत नवंबर में सोनीपत व पानीपत में जहरीली शराब से 31 लोगों की मौत हो गई थी। हरियाणा सरकार ने जांच के लिये विशेष दल भी बनाया था, लेकिन समस्या की गहराई तक पहुंचने की कवायद किस हद तक सफल रही, कहना मुश्किल है।
जरूरत इस कारोबार के फलने-फूलने के कारण और इसके स्रोत का पता लगाने की है। इस साल जनवरी में मध्य प्रदेश के मुरैना में जहरीली शराब से बीस से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। राजस्थान के भरतपुर से भी ऐसे मामले सामने आये। आखिर जहरीली शराब के तांडव व मौतों के कोहराम के बावजूद सरकारें सतर्क क्यों नहीं होतीं। क्यों इस कारोबार व तस्करी पर रोक नहीं लगती। वर्ष 2019 फरवरी में यूपी व उत्तराखंड के चार जनपदों में जहरीली शराब से सौ से अधिक लोगों की मौत हुई थी। उ.प्र. सरकार ने भी तब आबकारी अधिनियम में संशोधन किया था। आम धारणा है कि यह खेल नेताओं, अफसरों व शराब माफिया की मिलीभगत के नहीं चल सकता। वैसे भी हादसों में पुलिस-प्रशासन के अधिकारी तो बदलते हैं मगर आबकारी विभाग के अधिकारियों पर कम ही कार्रवाई होती है।