प्रतिदिन :
भूखे पेट कैसे विश्वगुरु बनेगा भारत ?
भारत में कितने अच्छे दिन चल रहे है| ग्लोबल हंगर इंडेक्स में हमारा भारत सोमालिया, येमन, अफ़ग़ानिस्तान जैसे देशों के समकक्ष खड़ा है। दुनिया के कोई १५ देश ही ऐसे हैं जो भारत से भी खराब हालत में हैं–पापुआ न्यू गिनी, अफगानिस्तान, नाइजीरिया, कांगो, मोजांबिक, सिएर्रे लियॉन, तिमोर-लेस्टे,
हैती, लाइबेरिया, मेडागास्कर, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, चाड, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, यमन और सोमालिया। ग्लोबल हंगर इंडेक्स-२०२१ के अनुसार दुनिया के ११६ देशों के सबसे भूखे लोगों की सूची में भारत१०१ वें स्थान पर काबिज है। पिछले वर्ष, यानि२०२० में कुल १०७ देशों में हमारा स्थान ९४ वें था। हमारे साथ सफर करने वाला पाकिस्तान ९२ वें स्थान पर है जबकि नेपाल और बंगलादेश संयुक्त तौर पर ७६ वे स्थान पर हैं। एक सवाल है, भूखा देश भारत क्या खाकर विश्वगुरु बनेगा ?
इस रिपोर्ट को कंसर्नवर्ल्डवाइड और जर्मनी की वेल्टहंगरहिलफे नामक संस्था हरेक वर्ष संयुक्त तौर
तैयार करती है। इस मानदंड हैं – कुपोषण,५ वर्ष के कम उम्र के बच्चों का वजन और लम्बाई का
अनुपात, ५ वर्ष से कम उम्र के बच्चों की लम्बाई और शिशु मृत्यु दर। इस इंडेक्स का पैमाना
० से १०० तक रहता है,० यानि सबसे अच्छा और
१०० मतलब सबसे खराब।५० से अधिक अंक वाले देशों को भूख के सन्दर्भ में खतरनाक माना जाता है – इस वर्ष
केवल सोमालिया ही ५० अंक से ऊपर वाला देश है, इसका अंक ५०/८ है।
रिपोर्ट कहती है दुनिया ने भूख कम करने के
क्षेत्र में जितनी भी तरक्की की थी, सब धीरे-धीरे ख़त्म हो
रहा है और यदि यही हाल रहा तो संयुक्त राष्ट्र के भूख को
समाप्त करने के सतत विकास लक्ष्य को कभी हासिल नहीं किया जा सकेगा, अभी दुनिया से भूख खत्म करने का लक्ष्य वर्ष २०३० है। दूसरी तरफ कुल ४७ देश ऐसे हैं, जो भूखमरी को ख़त्म करना तो दूर, इसे वर्ष
२०३० तक कम भी नहीं कर पायेंगें। इस समय भूखमरी का सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन, कोविड १९ और अनेक देशों में पनपे
गृहयुद्ध हैं। भूखमरी से सबसे अधिक
प्रभावित सहारा के आसपास बसे अफ्रीकी देश और दक्षिण एशिया है। दुनिया के५ देशों में भूखमरी खतरनाक
स्तर पर है, जबकि अन्य३१ देशों में इसकी स्थिति गंभीर है।
संसद का पूरा सत्र ऐसे ही बीत गया, सरकार ने भूख और किसानों के ऊपर कोई
चर्चा नहीं की |इसके विपरीत किसानों का जीवट देखिये,
वे पूरी निष्ठां और लगन से
अपना काम कर रहे हैं, अनाज के गोदाम भर रहे हैं और
सरकार इन अनाजों को बर्बाद कर रही है। कृषि पर संसद की स्टैंडिंग
कमिटी की एक रिपोर्ट के
अनुसार देश के सरकारी
गोदामों में पिछले तीन वर्ष के दौरान ४०६ करोड़ रुपये का अनाज बर्बाद हुआ है और १.३९ करोड़ रुपये का अनाज चोरी हो गया है। इससे देश की आधी बेघर
आबादी का तीन महीने तक पौष्टिक आहार दिया जा
सकता था।
आज सरकारी भंडारों में अन्न बर्बाद हो रहा है। अन्न की बर्बादी के आंकड़े भी अलग-अलग है। जब राम बिलास पासवान
कृषि मंत्री थे, तब उन्होंने बताया था कि अनाज का भंडारण वैज्ञानिक तरीके से किया जाता है और इसमें बर्बादी महज ०.००२ प्रतिशत है। दूसरी तरफ फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया, जो अनाज का भंडारण करती है, के अनुसार अनाज की बर्बादी औसतन
०.७ प्रतिशत होती है, जबकि जानकारों के अनुसार यह बर्बादी
१ प्रतिशत से अधिक होती है।
मई-जून २०२० में देश के गरीब भूख से तबाह हो रहे थे, पैदल सैकड़ों किलोमीटर चल रहे थे और रास्ते में भूख से दम तोड़ रहे थे, तब
सरकारी गोदामों में अनाज की बर्बादी अपने चरम पर थी। मिनिस्ट्री ऑफ़ कंज्यूमर अफेयर्स के अनुसार वर्ष २०२० में मई से अगस्त के बीच
सरकारी गोदामों में१५५० लाख टन से भी अधिक
अनाज की बर्बादी हुई। आंकड़ों के अनुसार मई में२६ लाख टन, जून में१४५३ लाख टन, जुलाई में ४१ लाख टन और अगस्त में५१ लाख टन अनाज भंडारण के दौरान बर्बाद हुआ। फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया के अनुसार यह बर्बादी सामान्य से १५ प्रतिशत से भी
अधिक थी। मिनिस्ट्री ऑफ़ कंज्यूमर अफेयर्स के अनुसार वर्ष २०२० में जनवरी से अप्रैल के बीच ६५ लाख टन अनाज बर्बाद हुआ। वर्ष २०१६ के दौरान संसद में बताया गया था कि देश में प्रतिवर्ष औसतन ९२६५१
करोड़ रुपये मूल्य का लगभग ७ करोड़ टन अनाज बर्बाद होता है। संयुक्त राष्ट्र के फ़ूड एंड
एग्रीकल्चर आर्गेनाईजेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में अनाज पैदा करने से पैदा करने से लेकर इसके उपभोग के बीच लगभग ४० करोड़ का अनाज बर्बाद हो जाता है, जिसमें लगभग २
करोड़ टन गेहूं होता है। देश में लगभग १४ प्रतिशत से अधिक आबादी
कुपोषित है, फिर भी प्रति
व्यक्ति औसतन५० किलोग्राम प्रतिवर्ष खाने की
बर्बादी की जाती है।