प्रतिदिन:
नागरिकों, आज़ादी का मतलब समझो
देश में स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाने के नाम पर बहुत कुछ किया जा रहा है, परन्तु कुछ सवाल खड़े हैं जिनका जवाब माँगा जाना चाहिये| कहने को देश के नागरिकों को रोटी का अधिकार दिया गया, शिक्षा का अधिकार दिया गया, पर क्या सबको रोटी और शिक्षा सबको नसीब हुई है? स्वास्थ्य सेवाएं जनता को देना सरकारों का काम है। कोविड काल में जनता की बेचारगी सरकारी अस्पताल के बाहर देखी गई| नागरिक अपने परिवार, परिजनों के उपचार के लिए तड़पते रहे हैं | ओमिक्रान के भय से नागरिक सहमे दिख रहे हैं | हकीकत में राजनीति जनता से छल कर रही है, अब नागरिकों को बोलना ही होगा।
वस्तुत:देश का लोकतंत्र दल-बदलुओं के हाथ में है। इस तिकडम से जनप्रतिनिधि जनता के सेवक नहीं, अपितु शोषक बनते जा रहे हैं। नागरिको की हालत यह है कोई रोटी की मजबूरी में, कोई नौकरी की बेबसी में, नेताओं के दरवाजों पर घुटने टेक कर जो जैसा है वैसा ही स्वीकार करता जा रहा है।
इस मुद्दे को उठाने से पहले तोडा इतिहास जानें| आजादी के बाद विभाजन की टीस और विषम परिस्थितियां, १९६२ और १९६५ के युद्ध चुनौती थे। अफसोस देश के नागरिक ‘हम सब भारतवासी’ और ‘हिंदी है हम वतन है’ का पवित्र मंत्र रटते रहे और चुनावी रणवीरों ने देश के ओज-जोश को फीका कर दिया। देश के आंगन में गुलाब के फूलों की जगह नागफनी को स्थान दिया, देश में गरीबी हटाओ के नारे तो खूब लगे, पर गरीबी अब भी जस की तस है। संकुचित सोच के चलते ये देश के नेता की जगह कुछ जातियों के, कुछ राज्यों के, कुछ क्षेत्रों के नेता हो गए। अब तो वोट लेने के लिए जातिवाद, प्रांतवाद और संप्रदायवाद को बढ़ावा दिया जाता साफ दिखता है। कुछ राज्यों में दूसरे राज्यों के लोगों के प्रति भेदभाव की भावना साफ नजर आती है। अब नागरिको की जिम्मेदारी है, चुनाव से पूर्व राजनीतिक दलों से सीधी बात करें ।
नागरिकों को अपने-अपने क्षेत्र के नेताओं से पूछना चाहिए कि देश में बढ़ती महंगाई के साथ ठेका कर्मचारियों का वेतन क्यों न बढ़ा? जो अस्थायी कर्मचारी दस वर्ष पहले सात आठ हजार रुपये में गुजारा करता था, आज बच्चों का पिता बनकर भी बढ़ती महंगाई से उसी सात आठ हजार के साथ क्यों जूझ रहा है। पूछना यह भी होगा कि जब सरकारों ने हर घर नल और नल में स्वच्छ जल का नारा दे दिया तो फिर अमीरों और सरकारों के आयोजनों में नल के पानी की जगह बिसलरी का पानी क्यों ? हजारों रुपयों का तो पानी ही सरकारी मीटिंगों और आयोजनों में पिला दिया जाता है, बहा दिया जाता है, इसके विपरीत आम जनता दूषित जल पीने को बाध्य है| पूर देश को साफ़ पानी थ मयस्सर नहीं है|
प्रदेश के मुख्यमंत्री बड़े-बड़े भाषणों में स्मार्ट सिटी की बात करते हैं। स्मार्ट का अर्थ सीधा-सीधा यही है कि ठेकेदारों को करोड़ों रुपयों का काम मिला। बना हुआ शहर तोड़ा गया। शहर के लोगों के हिस्से धूल और मिट्टी, चौड़ी सड़कें कटे पेड़ आये और वीआईपी लोगों को कारें दौड़ाने के लिए एक मुलायम सड़क मिल गई ।प्रदेश और देश के लोग स्मार्ट नहीं बन पाए, अस्सी वर्ष का बुजुर्ग भी अस्सी किलो भार उठाकर या रिक्शा खींचकर या पेट के बल ठेला चलाकर रोटी कमाने को मजबूर है, बुढ़ापा पेंशन भी मयस्सर नहीं है, किस स्मार्टनेस की बात करते हैं?
चुनावी दंगल में कोई इन नेताओं से सीधा प्रश्न करने का साहस नहीं कर सकता । शराब युक्त प्रदेश और देश बनाने के लिए पूरा प्रयास हो रहा है। शराब पीने पिलाने का पूरा काम सरकारें करती हैं। बेचती हैं, बांटती हैं, नोट कमाती हैं। देश के बच्चों को रोजगार मिलेगा, नारे लगते हैं पर बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और देश की जवानी को दिशा देने में असमर्थ देश का नेतृत्व के कारण हमारी नई पीढ़ी विदेशों की ओर भाग रही है। राजनीतिक दल मुफ्तखोरी का भाषणी आश्वासन देकर भूखे पेट को सब्जबाग दिखाकर वोट लेते हैं । अब यह कानून बनना चाहिए कि जो वचन चुनाव से पूर्व जनता को दिए गए उसे पूरा किया जाए अन्यथा जो समझौता तोड़ने का और झूठ बोलने का दंड होता है वह दिया जाए। नागरिकों, आज़ादी का अर्थ आपको ही खोजना होगा, वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था आपको भ्रमित करेगी और फिर कोई कुर्सी पर बरसों के लिए बैठ कर व्यवस्था को भ्रष्ट करता रहेगा|
श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
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