- अभिमत

अमेरिका का पक्ष ठीक नही

प्रतिदिन विचार :

पता नहीं भारत से क्या नाराजी है? डेट्रॉयट में एक जनसभा के दौरान अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कहा कि भारत विदेशी वस्तुओं पर सबसे ज्यादा शुल्क लगाता है। वैसे यह पहला मौका नहीं था। पिछले महीने भी उन्होंने भारत को आयात शुल्क का सबसे ज्यादा दुरुपयोग करने वाला बताया था। 2020 में तो उन्होंने भारत को ‘टैरिफ किंग’ तक कह डाला था। यह ज़रूरी विचारका विषय है कि भारत द्वारा अधिक शुल्क या टैरिफ लगाने जाने के ट्रंप के दावे में कितना दम है और भारत के शुल्क क्या वाकई वैश्विक व्यापार के नियम तोड़ रहे हैं और भारत-अमेरिका संबंध इससे कैसे प्रभावित हो रहे हैं।

ट्रंप सबसे ज्यादा शुल्क की ही बात करते हैं। भारत का औसत आयात शुल्क 17 प्रतिशत है जो अमेरिका के 3.3 प्रतिशत से काफी ज्यादा है लेकिन ट्रंप इसकी बात ही नहीं करते। इसके बजाय वह अधिकतम शुल्क की बात करते हैं, जिस पर लोगों का ध्यान फौरन पहुंच जाता है।

2019 में भी उन्होंने कहा कि भारत अमेरिकी व्हिस्की पर 150 प्रतिशत शुल्क लगाता है। भारत बेशक व्हिस्की (150 प्रतिशत) और वाहनों (100-125 प्रतिशत) पर ऊंचा शुल्क लगाता है मगर कई देश अपने कुछ खास उद्योगों को संरक्षण प्रदान करने के लिए अधिक शुल्क लगाते हैं और भारत ऐसा करने वाला अकेला देश नहीं है।

अमेरिका ने विभिन्न उत्पाद समूहों पर उच्चतम शुल्क लगाए हैं। इनमें डेरी उत्पाद (188 प्रतिशत), फल एवं सब्जियां (132 प्रतिशत), अनाज एवं खाद्य सामग्री (193 प्रतिशत), तिलहन, वसा और तेल (164 प्रतिशत), पेय पदार्थ एवं तंबाकू (150 प्रतिशत), खनिज एवं धातु (187 प्रतिशत) और कपड़े (135 प्रतिशत) शामिल हैं।

भारत के उच्चतम शुल्कों को देखकर उसे टैरिफ किंग बताने का ट्रंप का दावा सही नहीं है क्योंकि कई दूसरे देशों के शुल्क भारत से ज्यादा हैं। जापान का उच्चतम शुल्क 457 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया का 887 प्रतिशत और अमेरिका का उच्चतम शुल्क 350 फीसदी है जबकि भारत का उच्चतम शुल्क 150 प्रतिशत ही है।

उच्चतम शुल्क आम तौर पर संवेदनशील क्षेत्रों को महफूज रखने के लिए लगाया जाता है। मसलन जापान अपने किसानों के हितों की रक्षा के मकसद से चावल पर ऊंचा शुल्क लगाता है। लेकिन ये सर्वोच्च शुल्क अपवाद हैं और उन देशों में ज्यादातर व्यापार इतनी ऊंची दरों पर नहीं होता। देश के आयात शुल्क की सही तस्वीर उसके औसत टैरिफ से ही मिलती है।

भारत का 17 प्रतिशत का औसत टैरिफ अमेरिका के 3.3 प्रतिशत औसत से अधिक है। मगर यह दक्षिण कोरिया के 13.4 प्रतिशत और चीन के 7.5 प्रतिशत के करीब है। औद्योगिक उत्पादों के लिए भारत का औसत शुल्क 13.5 प्रतिशत है और लेकिन आयातित मूल्य की इकाई के हिसाब से औसत शुल्क या ट्रेड वेटेड एवरेज देखें तो यह 9 प्रतिशत ही पड़ता है।

वैश्विक व्यापार के नियम विश्व व्यापार संगठन तय करता है और भारत उसके शुल्क संबंधी नियमों का उल्लंघन नहीं करता, लेकिन अमेरिका ऐसा करता है। नियम तोड़े जाएं तो सदस्य देश डब्ल्यूटीओ से हस्तक्षेप करने के लिए कह सकते हैं। हालांकि अमेरिका अक्सर भारत का नाम लेकर चिंता जताता है मगर उसने भारत के ऊंचे शुल्कों को डब्ल्यूटीओ में चुनौती नहीं दी है क्योंकि वह जानता है कि भारत का शुल्क डब्ल्यूटीओ की सहमति वाली सीमा के भीतर है।

जब 1995 में डब्ल्यूटीओ की शुरुआत हुई तब विभिन्न देशों ने उत्पादों पर अधिकतम शुल्क तय कर दिए जिन्हें ‘बाउंड टैरिफ’ (बाध्यकारी शुल्क) कहा गया और शुल्क उससे अधिक नहीं बढ़ाने पर भी वे रजामंद हो गए।

अमेरिका और जापान जैसे विकसित देशों ने कम बाउंड टैरिफ (लगभग 3-4 प्रतिशत) रखा था और भारत जैसे विकासशील देशों को अधिक टैरिफ (40-150 प्रतिशत) की इजाजत दे दी गई।

मगर विकसित देशों ने विकासशील देशों के लिए ऐसा लचीला रुख अपनाते समय यह शर्त रख दी कि उन देशों को डब्ल्यूटीओ की वार्ता में बौद्धिक संपदा अधिकार और सेवाओं को भी शामिल करना होगा। कम बाउंड टैरिफ के कारण ही अमेरिका डब्ल्यूटीओ के नियम तोड़े बगैर शुल्क नहीं बढ़ा सकता। मगर भारत स्टील पर टैरिफ 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत तक कर सकता है और डब्ल्यूटीओ नियमों का उल्लंघन भी नहीं होगा क्योंकि स्टील पर बाउंड टैरिफ 40 प्रतिशत है।

किसी देश के बाउंड टैरिफ और वास्तविक टैरिफ के बीच का अंतर ‘वाटर’ कहलाता है। अमेरिका, जापान और चीन जैसे देशों का वाटर कम है, जबकि भारत का ज्यादा है। इसका मतलब है कि भारत के पास डब्ल्यूटीओ के नियम तोड़े बगैर शुल्क बढ़ाने की ज्यादा गुंजाइश है। अमेरिका डब्ल्यूटीओ के राष्ट्रीय सुरक्षा अपवाद नियमों के सहारे ही शुल्क बढ़ा सकता है। मगर यह दलील गले नहीं उतरेगी कि स्टील और एल्युमीनियम के आयात से अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है।

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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