- अभिमत

न्यूक्लियर फ्यूजन से सूरज

प्रतिदिन विचार:

न्यूक्लियर फ्यूजन से सूरज

फ्रांस यात्रा के दौरान देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इंटरनेशनल थर्मो न्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (आईटीईआर), प्रोजेक्ट को देखने गए, इसके तहत धरती में कृत्रिम ‘मिनी सूरज’ बनाने की कोशिश हो रही है। यह कोशिश दुनिया के कई देशों के वैज्ञानिक मिलकर कर रहे हैं, जिनमें भारतीय भी हैं।

प्रधानमंत्री मोदी इस प्रोजेक्ट को फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ देखने गए थे। उल्लेखनीय है कि भारत भी तो इस प्रोजेक्ट का एक अहम हिस्सेदार है। भारत न केवल इस प्रोजेक्ट की लागत में हिस्सेदारी कर रहा है बल्कि हमारे कई वैज्ञानिक इस प्रोजेक्ट की कोर टीम का हिस्सा हैं। सूरज में जिस प्रक्रिया से ऊर्जा उत्पन्न होती है, इस प्रोजेक्ट का मकसद उसी प्रक्रिया से बिजली उत्पन्न करना है। एक तरह से वैज्ञानिक धरती में कृत्रिम ‘मिनी सूरज’ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यह अब तक का दुनिया का सबसे महंगा और महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है,जो अगर सफल हुआ तो असीमित मात्रा में बिजली पैदा करेगा।

इसके तहत दुनिया की सबसे बड़ी ‘टोकामक’ बनायी जा रही है। टोकामक रशियन शब्द है जिसका मतलब एक ऐसी मशीन है,जिसका इस्तेमाल परमाणु संलयन से ऊर्जा पाने के लिए किया जाता है। इसमें चुंबकीय क्षेत्र का इस्तेमाल करके प्लाज़्मा को ‘डोनट’ के आकार में सीमित कर दिया जाता है। इस आकार को वैज्ञानिकों की भाषा में टोरस कहते हैं। यह वैक्यूम वेसल ‘सुपरकंडक्टिंग मैग्नेट’ होता है। अनुमान है कि प्रोजेक्ट के सफल होने पर इस पावर प्लांट से 500 मेगावाट न्यूक्लियर एनर्जी का उत्पादन किया जाएगा।

दुनिया के इस सबसे बड़े एक्सपेरिमेंटल प्रोजेक्ट आईटीईआर की शुरुआत साल 2006 में फ्रांस के राष्ट्रपति भवन में हुई, जहां दुनिया के सात देश इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर साथ-साथ काम करने को राजी हुए। ये देश थे- अमेरिका, यूरोपीय यूनियन, रूस, चीन, भारत और दक्षिण कोरिया। आज इस प्रोजेक्ट में 30 देश अपना योगदान दे रहे हैं।

इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य है न्यूक्लियर फ्यूजन यानी परमाणु संलयन में महारत हासिल करना। न्यूक्लियर फ्यूजन सूर्य और बाकी तारों में होने वाली एक प्रक्रिया है,जिससे उनमें गर्मी पैदा होती है। लेकिन पृथ्वी पर न्यूक्लियर फ्यूजन की नकल करके एक मिनी सूरज बना लेना बेहद मुश्किल है। लेकिन यदि ऐसा हो गया तो फिर हमें असीमित मात्रा में ऊर्जा मिल सकती है। साथ ही यह ऊर्जा जीवाश्म ईंधन की तरह ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी नहीं करेगी। न्यूक्लियर फ्यूजन में किसी तरह का रेडियोएक्टिव कचरा नहीं निकलता। इस मिनी सूरज प्रोजेक्ट का सात सालों तक नेतृत्व करने वाले फ्रांस के बर्नार्ड बिगोट ने एक बार कहा था, ‘हम यहां जो करने की कोशिश कर रहे हैं, अगर उसमें सफल रहे यानी मिनी सूरज बना लिया तो फिर इंसान द्वारा बनाया गया यह सूरज कभी नहीं डूबेगा यानी यह ‘फ्यूजन पावर प्लांट’ हर समय चलता रहेगा।’

इस प्रोजेक्ट के तहत जो एक मिनी सूरज बनाया जा रहा है,उसमें असीमित ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए दो हाइड्रोजन परमाणुओं को बहुत अधिक वेग से एक दूसरे की तरफ धकेला जाता है, इससे ये दोनों जुड़कर हीलियम परमाणु बनाते हैं। साथ ही इस दौरान न्यूट्रॉन भी बनता है,जिससे अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा निकलती है। प्रोजेक्ट के विशेषज्ञों का मानना है कि फ्यूजन एनर्जी पैदा करना मुश्किल नहीं है, इसे लगातार बनाए रखना मुश्किल है। आईटीईआर प्रोजेक्ट का आकार इतना बड़ा है, जिसमें 39 बड़ी इमारतें बन सकती हैं।

न्यूक्लियर फ्यूजन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली डिवाइस टोकामक का वजन 23,000 टन है। यह वजन तीन एफिल टावर के संयुक्त वजन के बराबर है। इस रिएक्टर में दस लाख घटक शामिल हैं, जो कम से कम एक करोड़ छोटे भागों में बंटे हुए हैं। रिएक्टर में लगभग 4,500 कंपनियों से जुड़े सैकड़ों वैज्ञानिक और कर्मचारी दिन-रात काम कर रहे हैं। शुरु में प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत करीब 5 अरब डॉलर थी लेकिन समय के साथ यह बढ़कर 22 अरब डॉलर हुई मगर अब अमेरिका के ऊर्जा विभाग का अनुमान है कि प्रोजेक्ट की कीमत 65 अरब डॉलर तक हो सकती है। इसे दुनिया का सबसे मंहगा वैज्ञानिक प्रोजेक्ट कहा जा रहा है।

पहले माना जा रहा था कि प्रोजेक्ट 2020 तक पूरा हो जाएगा लेकिन जुलाई 2024 तक रिएक्टर सिर्फ पूरी तरह से असेंबल हो पाया था। अब वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2039 तक यह प्रोजेक्ट काम करना शुरू कर सकता है। भारत इस प्रोजेक्ट में 10 प्रतिशत खर्च की जिम्मेदारी उठा रहा है व 17,500 करोड़ रुपए देने का वादा किया है। साथ ही करीब 25 से 30 भारतीय वैज्ञानिक हमेशा इस प्रोजेक्ट में मौजूद होते हैं। यूरोपीय संघ प्रोजेक्ट की लागत का 45 प्रतिशत खर्च उठा रहा है।

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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