रूस करीब 5 अरब डॉलर यानी 40 हज़ार करोड़ रुपए में S-400 डिफेंस सिस्टमकी पांच रेजिमेंट्स भारत को बेचेगा। यह डिफेंस सिस्टम भारत को 2020 में मिलेगा, जिससे देश की एयर फोर्स मज़बूत होगी।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब दुनिया कोल्ड वॉर में डूबी हुई थी, तब अमेरिका की कंपनियां अपने लड़ाकू विमान और विकसित करने में लगी हुई थीं। मारने की तकनीक को बेहतर बनाने की ज़िद का अपना कोई मोल नहीं है, जब तक उसे कोई पूरक न मिल जाए। अमेरिका की ज़िद का पूरक था सोवियत संघ, जिसे अपनी हवाई मारक क्षमता बढ़ाने की ज़रूरत महसूस होती रही। सोवियत संघ में रूस सबसे आगे था। दोनों देशों की प्रतियोगिता में तीसरी, चौथी यहां तक कि पांचवी पीढ़ी तक के लड़ाकू विमान विकसित हुए।
इस अंधी दौड़ में भागते हुए किसी मोड़ पर रूस को अहसास हुआ कि वह मारने वाले हथियारों के मामले में वह अमेरिका से आगे नहीं निकल सकता। तो उसने फितूर निकाला कि अगर वह विमानों से नहीं मार सकता, तो वह विमानों को मारने की कोशिश करेगा। इसी अहसास के साथ सोवियंत संघ ने लड़ाकू विमानों और मिसाइलों को गिराने वाली तकनीक पर काम करना शुरू कर दिया।
1967 में सोवियत संघ ने S-200 नाम का एयर डिफेंस सिस्टम ईजाद किया, जिसका आज भी इस्तेमाल हो रहा है। 1978 में S-300 आया। 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया और इसके सबसे बड़े बेटे रूस को विरासत में ढेरों हथियार मिले। 2007 में रूस ने S-400 एयर डिफेंस सिस्टम तैनात किया, जिसे भारत अब खरीद रहा है। 21वीं सदी के पहले क्वॉर्टर की बात करें, तो यह अभी तक का बेस्ट एयर डिफेंस सिस्टम है।
रूस ने भारत के पड़ोसी चीन को भी यह डिफेंस सिस्टम बेचा है, जो उसे 2018 खत्म होते-होते मिल जाएगा। भारत को यह 2020 में मिलेगा और तब तक रूस अपनी सीमाओं पर इसका भी अपग्रेडेड वर्जन S-500 तैनात करेगा।
यह बहुत ही सिंपल सी टेक्निक है। इसमें ढेर सारे रेडार लगे होते हैं, जिनसे यह पता लगा लेता है कि ऑब्जेक्ट (जिसे मारना है) कहां है। इसकी क्षमता यह है कि 400 किमी के दायरे में आने वाले किसी भी खतरे को खत्म कर सकता है। फिर खतरा चाहे लड़ाकू विमान हो, ड्रोन हो या मिसाइल हो। ये गिरा देगा।
S-400 का जलवा यह है कि इसके रडार 100 से 300 टारगेट ट्रैक कर सकते हैं। 600 किमी तक की रेंज में ट्रैकिंग कर सकता है। इसमें लगी मिसाइलें 30 किमी ऊंचाई और 400 किमी की दूरी में किसी भी टारगेट को भेद सकती हैं। मन करे, तो इससे ज़मीनी ठिकानों को भी निशाना बनाया जा सकता है। सबसे तगड़ी चीज़ यह कि एक ही समय में यह 400 किमी तक 36 टारगेट को एक साथ मार सकती है। इसमें 12 लॉन्चर होते हैं, यह तीन मिसाइल एक साथ दाग सकता है और इसे तैनात करने में पांच मिनट लगते हैं।
इसमें चार तरह की मिसाइल होती हैं। एक मिसाइल 400 किमी की रेंज वाली होती है, दूसरी 250 किमी, तीसरी 120 और चौथी 40 किमी की रेंज वाली होती है। यह इस बात की ज़िम्मेदारी भी ले सकता है कि दुश्मन की मिसाइल को कौन से फेज़ में गिराना है। लॉन्चिंग के तुरंत बाद, कुछ दूरी पर या करीब आने पर।
यह डिफेंस सिस्टम पाकिस्तान की कम दूरी वाली परमाणु मिसाइलों को गिरा सकता है। भारत की चीन से लगती हुई सीमा 4000 किमी लंबी है, जिसकी सुरक्षा में सिस्टम से मदद मिलेगी। इस सिस्टम के बूते चीन बॉर्डर पर तिब्बत और पाकिस्तान बॉर्डर पर अफगानिस्तान की थाह ली जा सकती है।
रिपोर्ट के मुताबिक भारत जिस डिफेंस सिस्टम पर काम कर रहा है, उसका नाम पृथ्वी एयर डिफेंस है, जिसका एक नाम प्रद्युम्न बलिस्टिक मिसाइल इंटरसेप्टर भी है। कई परीक्षणों के बावजूद इसे तैनाती नहीं मिली है।
फ्रांस और इटली ने मिलकर एस्तर मिसाइल सिस्टम डिवेलप किया है। ब्रिटेन भी इसका इस्तेमाल करता है।
इज़रायल एयरो मिसाइल सिस्टम इस्तेमाल करता है। अक्टूबर 2000 से इज़रायल इसका इस्तेमाल कर रहा है।
अमेरिका में Terminal High Altitude Area Defense यानी थाड है। यह 1991 के खाड़ी युद्ध के बाद डिवेलप किया गया था, जो अमेरिका के अलावा संयुक्त अरब अमीरात और दक्षिण कोरिया में तैनात है।
रूस की S सीरीज़ दुनियाभर में बेस्ट मानी जाती है। वह S-500 पर काम कर रहा है, जो उसके अलावा किसी के पास नहीं होगा।