कांग्रेस ने तीन राज्यों में जीत हासिल करने के बाद सबसे पहला काम जो किया वो था किसानों की कर्जमाफी। लेकिन कर्जमाफी बैंक और किसानों के लिए एक बुरी खबर है। यह उन्हें त्वरित राहत तो दे सकती है मगर इससे किसान ऋण का भुगतान करना बंद कर देते हैं। जिससे बैंक का वित्तिय प्रबंधन प्रभावित होता है। वहीं दूसरी तरफ बैंक नया कर्ज देने के मामले में तब तक धीमे हो जाते हैं जब तक राज्य सरकार लिखित राशि की प्रतिपूर्ति नहीं करती। जो अमूमन कई सालों बाद होता है।
इसके कारण किसानों की क्रेडिट सप्लाई धीमी हो जाती है। जिसकी वजह से कई किसानों को बैंक के बाहर दूसरे स्रोतों से कर्ज लेने पर मजबूर होना पड़ता है। ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि मध्यप्रदेश में पिछले तीन सालों 2014-15 से लेकर जून 2018 तक एनपीए बढ़कर दोगुने 10.6 प्रतिशत हो गए हैं। राज्य स्तरीय बैंकरों की समिति के अनुसार केवल एक साल की अवधि में राज्य के कृषि ऋण पर 24 प्रतिशत एनपीए बढ़ गया है।
एक वरिष्ठ बैंकर के मुताबिक, ‘लेनदारों के लिए यह स्वाभाविक है कि एक बार त्वरित राहत मिलने के बाद वह कर्ज की रकम का भुगतान करना बंद कर देते हैं। हमने इस तरह के ट्रेंड को राजस्थान में भी देखा है।’ मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और असम में किसानों की कर्जमाफी की घोषणा हुई है। मार्च 2018 के अंत में कृषि ऋण खंड में एनपीए लगभग 5.1% अनुमानित था, लेकिन कर्ज का भुगतान नहीं करना समस्या का केवल एक हिस्सा है।
बैंक भी कई बार कर्ज देने के मामले में सावधान हो जाते हैं क्योंकि राज्य कई बार कर्जमाफ की जाने वाली राशि को क्लीयर करने में समय लगाते हैं। उदाहरण के लिए तमिलनाडु ने एक योजना के तहत 2016 में 6,041 करोड़ की राशि की घोषणा की थी। वह पिछले पांच सालों में सहकारी संस्थानों को केवल 3,169 करोड़ रुपये ही वापस दे पाई है। फंड की कमी के कारण बैंक नया कर्ज देने के मामले में धीमे हो जाते हैं।
वहीं कर्नाटक में हाल में हुई राज्य स्तरीय बैंकर बैठक के बाद यह महसूस किया गया कि 5,353 करोड़ रुपये के उत्कृष्ट कृषि ऋण में गिरावट आई। एक बैंकर ने कहा, ‘इससे क्रेडिट साइकिल टूट जाती है क्योंकि बैंक अपनी बकाया राशि को क्लीयर करना चाहते हैं।’ राजस्थान के एक बैंकर ने कहा कि यह साफ नहीं है कि राज्य सरकार कब किसानों की कर्जमाफी वाली राशि का भुगतान बैंक को करेगी।