नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने आरक्षण को लेकर मास्टरस्ट्रोक चला है. सोमवार को मोदी कैबिनेट ने आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने की बात कही. ये आरक्षण सरकारी नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में दिया जाएगा. देश की राजनीति में ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी सरकार ने आरक्षण देने का ऐलान कर पूरा रुख ही मोड़ दिया हो.
BSP chief Mayawati to ANI: Lok Sabha chunaav se pehle liya gaya ye faisla humein sahi niyat se liya gaya faisla nahi lagta hai, chunavi stunt lagta hai, rajnitik chalaava lagta hai, acha hota agar BJP apna karyakaal khatam hone se thik pehle nahi balki aur pehle le leti. pic.twitter.com/Iidi2rT0eC
— ANI (@ANI) January 8, 2019
भारत में आरक्षण का इतिहास काफी पुराना रहा है, कई ऐसे अहम मोड़ रहे हैं जिन्होंने देश की राजनीति को पलट दिया है. पढ़ें देश में आरक्षण का क्या रहा है इतिहास ___
1950 – संविधान लागू हुआ
1953 – सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग का मूल्यांकन किया गया, कालेलकर आयोग की रिपोर्ट के आधार पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सिफारिशों को माना गया. OBC की सिफारिशों को नकारा गया.
1963 – सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आमतौर पर 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है. पिछड़े वर्गों को तीन कैटेगरी अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में बांटा गया है.
1976 – अनुसूचियों में संशोधन किया गया.
1979 – सामाजिक-शैक्षणिक रूप से पिछड़ों की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए मंडल कमिशन का गठन किया गया.
1980 – मंडल कमिशन ने कोटा में बदलाव करते हुए 22 फीसदी को 49.5 फीसदी तक ले जाने की सिफारिश की. जिसके बाद लंबे समय तक इस पर राजनीति चलती रही.
1990 – मंडल कमिशन की सिफारिशों को तत्कालीन वीपी सिंह की सरकार ने सरकारी नौकरियों में लागू किया. इसके खिलाफ देशभर में प्रदर्शन हुआ, इस दौरान दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र राजीव गोस्वामी ने आत्मदाह किया. ये वही राजीव गोस्वामी हैं जिनके नाम पर राजीव चौक का नामकरण हुआ है.
1991 – नरसिम्हा राव सरकार ने अलग से अगड़ी जातियों के लिए 10 फीसदी आरक्षण दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को गैर संवैधानिक करार दिया.
2006 – केंद्र सरकार ने शिक्षा क्षेत्र में भी अन्य पिछड़ा वर्ग वालों के लिए आरक्षण देने की शुरुआत की.
2014 – यूपीए सरकार ने जाटों को केंद्रीय ओबीसी की सूची में शामिल किया था. हालांकि, बाद में कोर्ट से इस फैसले को निरस्त कर दिया गया.
2014 – यूपीए सरकार ने अल्पसंख्यकों को 4.5 फीसदी आरक्षण देने की बात कही. हालांकि, कोर्ट में ये फैसला टिक नहीं पाया.
2019 – नरेंद्र मोदी सरकार ने आर्थिक रूप से गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने की बात कही.
पिछले काफी समय में भी अलग-अलग राज्यों में कई स्तर पर आरक्षण को लेकर आंदोलन हुए, कई राज्य सरकारों ने भी अलग-अलग आधार पर आरक्षण देने का ऐलान किया.