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यदि अपना काम ईमानदारी से नहीं कर रहे हैं तो आप भी देश के दुश्मन : डॉ. सोनम वांग्चुक

मध्यप्रदेश/भोपाल: मिंटो हॉल में शुक्रवार से आईएएस सर्विस मीट शुरू हुई। यह तीन दिन चलेगी। पहले दिन ‘थ्री इडियट्स’ फिल्म में आमिर खान के किरदार फुंगसुक वांगडू के पीछे की इंस्पिरेशन रहे डॉ. सोनम वांग्चुक ने स्पीच दी। अंतरात्मा को झकझोरने वाले शब्द उन्हीं की जुबानी ।

लद्दाख के दुर्गम पहाड़ों से चलकर मैं आपके बीच में एक संदेश देने आया हूं… लद्दाख का नाम सुनते ही हमारे जेहन में बर्फीली वादियों से घिरी खूबसूरत तस्वीर सामने आती है। लेकिन कई बार लद्दाख का जिक्र तब भी होता है, जब देश पर संकट गहराता है। चीन अक्सर हमारे दरवाजों पर दस्तक देता रहता है, कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि दरवाजा ही तोड़ना चाहता है। जब हम ये सुनते हैं कि चीन ने फिर लद्दाख में घुसपैठ की तो मन में आता है हमारे सैनिक सब संभाल लेंगे… वे करते भी ऐसा ही हैं, लेकिन ये मुकाबला सिर्फ सेना का नहीं बल्कि देश का भी होता है। ये मुकाबला दफ्तरों में काम कर रहे हम और आप का भी होता है। मुकाबला स्कूलों में पढ़ाई के स्तर का भी होता है।

सैनिक तो सिर्फ दुश्मन से देश की रक्षा करते हैं, लेकिन अगर आप अपने काम से बेईमानी करते हो तो आप भी देश के लिए उतनी ही दुश्मनी का काम कर रहे हैं जितना सीमा पर लड़ने के लिए तैयार खड़े दूसरे देश के सैनिक। और वो इसलिए क्योंकि आपका किया गया काम अगर आपके देश की उन्नति में बाधा बन रहा है तो ये देश को नीचा दिखा रहा है… और दुश्मन भी तो यही करता है।

आज हम शिक्षा की स्थिति देखें तो चीन 100 प्रतिशत शिक्षित हैं, हम नहीं हैं। अब इसमें तो सैनिक कुछ नहीं कर सकते न। ये तो हम नागरिक ही करेंगे। हमें शिक्षा को सर्वोपरि बनाना होगा, सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाना होगा। मैं खुद सरकारी स्कूलों में पढ़ा हुआ हूं और जानता हूं इन स्कूलों की स्थिति बेहतर हो जाए तो ये देश की तरक्की में बहुत बड़ी ताकत बन सकते है। ये तब होगा जब जनप्रतिनिधियों-अधिकारियों के बच्चे भी सरकारी स्कूलों में पढ़ें। इनके बच्चे जिस सरकारी स्कूल में पढ़ेंगे, उनकी शिक्षा के स्तर पर ध्यान देना, उस जनप्रतिनिधि या अफसर की एक व्यक्तिगत जिम्मेदारी हो जाएगी। अगर हम हर बच्चे तक बेहतर शिक्षा पहुंचा पाए, तभी हम सही मायनों में कह पाएंगे कि ‘हम एक महान देश में रहते हैं’।

मुझे समझ नहीं आता कि अगर ईश्वर हो तो वो किसको पसंद करेगा? उन्हें, जो आंख में आसू लिए भजन कर रहे हों, भले बच्चे भूखे मर रहे हों? या फिर उन्हें जो भले ईश्वर को नहीं मानते लेकिन उनके आसपास बच्चे खुश हैं, लोग शिक्षित हैं, आगे बढ़ रहे हैं?

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