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सबरीमाला मंदिर में दूसरे दिन भी महिलाओं की ‘नो एंट्री’, विरोध में हड़ताल-प्रदर्शन जारी

केरल में एक महिला पत्रकार ने सबरीमाला मंदिर तक जाने की भरसक कोशिश की। लेकिन उसे भारी विरोध-प्रदर्शन के बीच वापस लौटना पड़ा। इसलिए मंदिर के कपाट खुलने के बाद से इसमें कोई रजोधर्म वाली महिला प्रवेश नहीं कर सकी है।

सबरीमाला मंदिर के मुख्य पुजारी ने अपील की है कि 10-50 साल की आयु की महिलाएं मंदिर में न आएं। मुख्य पुजारी कंडारू राजीवारू ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ राज्यभर में हो रहे विरोध को देखते हुए यह अपील की।

लिहाजा, इस प्राचीन मंदिर की पुरातन रीतियों को अब तक बदला नहीं जा सका है। हालांकि भगवान अयप्पा के भक्तों पर पुलिस कार्रवाई के खिलाफ गुरुवार को भारतीय जनता पार्टी और कई हिंदू संगठनों की हड़ताल बेहद सफल रही। मंदिर पर्वत और आसपास के इलाकों में सुबह से शाम तक कोई चहल-पहल नहीं देखी गई। केंद्र सरकार ने केरल सरकार को राज्य में शांति स्थापित करने को कहा है।

सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश के फैसले के खिलाफ केरल के राजपरिवार और मंदिर के मुख्य पुजारियों समेत कई हिंदू संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की थी। अदालत ने सुनवाई से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश करने की इजाजत दी। यहां 10 साल की बच्चियों से लेकर 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी थी। प्रथा 800 साल से चली आ रही थी।

सबरीमाला मंदिर पत्तनमतिट्टा जिले के पेरियार टाइगर रिजर्वक्षेत्र में है। 12वीं सदी के इस मंदिर में भगवान अय्यप्पा की पूजा होती है। मान्यता है कि अय्यपा, भगवान शिव और विष्णु के स्त्री रूप अवतार मोहिनी के पुत्र हैं। दर्शन के लिए हर साल यहां साढ़े चार से पांच करोड़ लोग आते हैं।

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