- अभिमत

मोदी, मोदी…मोदी !

प्रतिदिन:
मोदी, मोदी…मोदी !

२०१९ का चुनाव में जो शोर सुनाई दे रहा है, वो मोदी, मोदी…मोदी ! है | भाजपा और उसके साथ जुड़े राजनीतिक दल और उनके सामने कांग्रेस और उसका जुड़ता-टूटता महागठ्बन्धन, सभी का पहला जुमला मोदी ही है | २०१४ के बाद और उसके पहले वाले नरेंद्र मोदी के समग्र आकलन का समय है | हर भारतीय को भी मत देने से पूर्व इस बात पर गौर करना चाहिए कि पिछले प्रधानमन्त्रियों की तुलना में वर्तमान प्रधानमंत्रीका कार्यकाल कैसा रहा ? साथ ही यदि यही प्रधानमंत्री दो बारा सत्ता में आते हैं तो वे क्या करें क्या न करें  हेतु सुझाव | विश्व के सबसे बड़े जनतंत्र  भारत में प्रधानमन्त्री सीधे चुने जाने का प्रावधान नहीं है, जिससे कई खूबियाँ और खामियां उस दल की आड़ में छिप जाती है,जिसके वे नुमाइंदे होते है | इस आकलन के दो प्रमुख आधार हैं – पहला उन्होंने सरकार कैसी चलाई दूसरा अपने दल की नीति का कितना पोषण किया ? सरकार देश की भावी नीति और दूरदृष्टि से चलती है और दलीय नीति का पोषण एक आश्वासन की पूर्ति होता है |  इन दोनों का संतुलन साधने में भारत के प्रधानमंत्री कुछ चूक भी करते रहे हैं | ये चूक आगे जाकर उन्हें उनके दल को उलाहने दिलाती हैं |
जैसे लोग पंडित नेहरू  को भारी उद्योगों पर जोर और चीन के साथ युद्ध के लिए अब तक कोसते हैं | इंदिरा गांधी सरकार की दो बड़ी खामियां बैंकों का राष्ट्रीयकरण और कांग्रेस पार्टी का निजीकरण माना जाता है । राजीव गांधी की बड़ी गलतियों में भारी राजकोषीय घाटा और श्रीलंका में सेना भेजने का फैसला गिना जाता है । श्रीलंका में शांति सेना भेजने की कीमत उनकी हत्या के रूप में देश को चुकाना पड़ी । पी वी नरसिंह राव ने अपने कार्यकाल गलती वो भी बड़ी गलती  बाबरी ढांचे के विध्वंस को रोकने में असफलता थी तो अटल बिहारी वाजपेयी गलती पाकिस्तान पर अतिविश्वास मानी जाती है । मनमोहन सिंह के कार्यकाल की गलती मनरेगा मानी गई | भारत की वर्तमान व्यवस्था में ऐसी चूकें होने की गुंजाईश कम नहीं है | नरेंद्र मोदी के खाते में शिक्षा क्षेत्र की कुव्यवस्था और रोजगार निर्माण को पर्याप्त प्राथमिकता  न देना लिखा जायेगा | नोटबंदी जैसे फैसलों के  असर को तो पलटा जा सकता है। जो नहीं हो सका | कुल मिलाकर ,सरकार के नेता के रूप में मोदी ने ठीक-ठाकप्रदर्शन किया है। होने को तो यह बहुत बुरा भी हो सकता था।

अब भाजपा के शीर्ष पुरुष के रूप में मोदी का प्रदर्शन? इसी भूमिका में देश के सारे प्रधानमंत्री खुद को मुश्किल में पाते रहे हैं। नेहरू इस समस्या से नहीं घिरे क्योंकि उन दिनों कांग्रेस काफी मजबूत थी। वाजपेयी अपने रवैये की वजह से इस पचड़े में नहीं पड़े। देश के बाकी सभी प्रधानमंत्रियों और खासकर मोदी का तो इस मामले में प्रदर्शन अच्छा नहीं कहा जा सकता है ।  मोदी चुनावी मोड़ से कभी बाहर नहीं आ सके| उनके पहले प्रधानमंत्री अंतिम महीनों में इस मोड़ में आते थे |मोदी ने  मई २०१४  में संसद में यह ऐलान किया कि वह अगले १०  वर्षों तक प्रधानमंत्री बने रहना चाहते हैं, उनकी नज़र  इस लोकसभा के चुनाव पर तभी से लगी है | दल के भीतर इसे लेकर एक असहजता भी है, जिसे चुनौती मान वे दो-दो हाथ कर  रहे हैं |मुख्यमंत्री रहते हुए राजनीतिक चुनौतियों का पहले ही अंदाजा लगाकर उसके हिसाब से काम करना उनकी बुनियादी शैली है। उन दिनों जब वह भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी हासिल करने की मुहिम में लगे हुए थे तब भी वह धीरे-धीरे खुद को एकमात्र संभावित विकल्प के तौर पर पेश करने में सफल रहे। इस बार भी वह अब तक यही काम करते आ रहे हैं।  जीत सेहरा और हार का ठीकरा दोनों उनके जिम्मे है |

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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