- अभिमत

पूंजी बाज़ार : निवेश में सुधार नहीं, खुदरा ऋण बाजार में सुधार जरूरी

प्रतिदिन
पूंजी बाज़ार : निवेश में सुधार नहीं, खुदरा ऋण बाजार में सुधार जरूरी

पिछले सप्ताह कई गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियां (एनबीएफसी) की रेटिंग में गिरावट आई। इनमें अनिल अंबानी के समूह की वित्तीय कंपनियां  और पीएनबी हाउसिंग फाइनैंस शामिल हैं। बॉन्ड बाजार वित्त वर्ष २०१९ की  दूसरी तिमाही में इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग ऐंड फाइनैंशियल सर्विसेज (आईएलऐंडएफएस) से तुलना करने के बाद से ही जोखिम में था। ऐसे में ताजा गिरावट ने एनबीएफसी की पूंजी और वृद्धि की लागत पर सवालिया निशान लगा दिए हैं। बीते कुछ वर्ष में एनबीएफसी क्षेत्र ने कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार की कुल उधारी का करीब ७० प्रतिशत हिस्सा लिया है। आईएलऐंडएफएस की घटना के बाद न केवल नकदी की समस्या हुई है बल्कि इनकी मांग में भी कमी आई है। इस बीच क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने कमजोर कंपनियों की रेटिंग घटा दी तथा अन्य के पूर्वानुमान में संशोधन किया। आज, कुछ एनबीएफसी बॉन्ड जुटाने में सक्षम हैं, उनकी लागत बढ़ रही है।
आईएलऐंडएफएस की घटना के पहले यह विस्तार ५० आधार अंक तक था। नकदी की कमी ने एनबीएफसी क्षेत्र का संकट और बढ़ा दिया।पहले  नोटबंदी के कारण नकदी की किल्लत हुई। हालांकि केंद्रीय बैंक ने खुले बाजार में बिक्री तथा अन्य उपायों से इसे दूर करने का प्रयास किया। वर्ष २०१९ में आरबीआई ने खुले बाजार में खरीद के जरिए करीब ३  लाख करोड़ रुपये की राशि डाली जो ऐतिहासिक है। इसके अलावा१०००  करोड़ डॉलर का बैंकों के साथ विनिमय किया गया। इन कारणों से बॉन्ड प्रतिफल में कमी आई लेकिन दरों में दो बार कटौती के बावजूद एनबीएफसी के लिए उधारी की दर ऊंची बनी हुई है क्योंकि कर्जदाताओं मांग ही  नहीं है। म्युचुअल फंड एनबीएफसी के प्रमुख ग्राहक थे पोर्टफोलियों में गिरावट को देखते हुए वे भी जोखिम से बच रहे हैं।
म्युचुअल फंडों को भी उस समय भी झटका लगा था जब उनको एस्सेल समूह के प्रवर्तकों और अनिल अंबानी समूह को ऋण देना रोकना पड़ा। सितंबर २०१८  और मार्च २०१९  के बीच इस उद्योग के डेट फंड से ६८००० करोड़ रुपये और डेट योजनाओं से १.३ लाख करोड़ रुपये की निकासी की गई। विश्लेषकों के मुताबिक चिंता की बात यह भी है कि घरेलू थोक ऋण बाजार एनबीएफसी के बीच भेद करता नजर आ रहा है। आईएलऐंडएफएस संकट सामने आने के बाद से बॉन्ड बाजार में हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनैंस कॉर्पोरेशन और एलआईसी हाउसिंग फाइनैंस की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। जिन कंपनियों को मजबूत माना जाता रहा है कि वे घरेलू बॉन्ड बाजार से राशि जुटाने में सफल रहीं लेकिन शेष कंपनियों पर यह बात लागू नहीं होती। थोक डेट बाजार के दरवाजे बंद होने पर एनबीएफसी फंड के अन्य जरियों मसलन बाह्य वाणिज्यिक ऋण और खुदरा क्षेत्र की ओर निगाह कर रही हैं।

पिछले कुछ वर्ष में एनबीएफसी ने खुदरा और छोटे एवं मझोले उपक्रमों को ऋण देने में अहम भूमिका निभाई है। बैंक ऐसा नहीं कर सके हैं। इसके अलावा सरकारी बैंक फंसे कर्ज की समस्या से भी दो-चार हैं। कुछ एनबीएफसी नाकाम हो सकती हैं या फिर उन्हें मजबूत कंपनियों के साथ विलय करना पड़ सकता है लेकिन व्यापक तौर पर देखें तो कुल कारोबार में आ रही कमी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं है। एसएमई पर नोटबंदी का असर पड़ा और उनको वस्तु एवं सेवा कर व्यवस्था के साथ तालमेल करने में भी दिकक्त हुई। उनको उचित लागत पर पूंजी चाहिए। खुदरा ऋण देश में खपत को गति देने के लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि निवेश में सुधार की कोई संभावना नहीं दिख रही।

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *