- अभिमत

देश में समाचार जानने की प्रवृत्ति में इजाफा

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देश में समाचार जानने की प्रवृत्ति में इजाफा

देश में समाचार जानने, विश्लेष्ण पढने और समझने की प्रवृत्ति आमजन में बढ़ी  है | इसके लिए वो प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों माध्यमों से समाचार सुनता, पढ़ता और विश्लेषित करता है | इलेक्ट्रानिक मीडिया के जोर के इस युग में भारत के लोग अब भी अख़बार को ज्यादा तरजीह देते हैं |वर्ष २०१९  की पहली तिमाही में ४२.५ करोड़ से भी ज्यादा भारतीयों ने छपे हुए समाचार पत्र पढ़े। यह संख्या वर्ष २०१७  की पहली तिमाही के ४०.७ करोड़ लोगों से अधिक है। आंकड़े इंडियन रीडरशिप सर्वे (आईआरएस) २०१९ ने अप्रैल माह में जारी किए हैं ।
विश्व के अधिकांश बाजारों के विपरीत भारत में समाचार पत्रों के पाठकों की तादाद और बीते दशक में लगातार बढ़ी है। वर्ष२०१६  के अंत तक अगर ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन के१० वर्ष के आंकड़ों का अध्ययन किया जाए तो औसत प्रसार४.८७ प्रतिशत बढ़कर ६.३ करोड़ के स्तर तक पहुंच गया। प्रिंट मीडिया १,६७, ४०० करोड़ रुपये के कारोबार वाला सबसे अधिक मुनाफे वाला क्षेत्र बना चुका है |

इसके बावजूद पिछले तीन वर्ष से उसका राजस्व ठहरा हुआ है, प्रश्न ऐसा क्यों है? यहां पर अवश्य चिंतित होने की बात है। वर्ष २०१८  तक के १० वर्ष में मीडिया के कुल राजस्व में प्रिंट की हिस्सेदारी ३० प्रतिशत से घटकर १८ प्रतिशत रह गई है। चूंकि इसका आधार बढ़ रहा था प्रिंट मीडिया का आकार करीब दोगुना हो गया। परंतु इन 10 वर्षों में से बीते तीन वर्ष वास्तव में कठिन रहे। आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष २०१६  के३०३३० करोड़ रुपये (विज्ञापन एवं सब्सक्रिप्शन ) से बढ़कर समाचार पत्रों और पत्रिकाओं का राजस्व २०१८ तक केवल३०५५० करोड़ रुपये तक ही पहुंचा। ख़ास बात यह है कि इसकी वजह इंटरनेट क नहीं है।

पिछले कुछ वर्षों से विज्ञापनदाताओं ने अपनी राशि अन्य मीडिया माध्यमों में व्यय करनी शुरू कर दी है । इसमें डिजिटल मीडिया  शामिल है। नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर के प्रिंट मीडिया उद्योग पर बुरे असर के बावजूद यह सिलसिला जारी रहा। रिलायंस ने जियो की शुरुआत की और डेटा कीमतें औंधे मुंह गिर पड़ी। इस कारण डेटा खपत में इजाफा हुआ। वर्ष २०१६  में जहां प्रति व्यक्ति प्रति माह ०.८ जीबी डेटा खपत होती थी वहीं २०१८  में यह बढ़कर ८  जीबी प्रति व्यक्ति प्रति माह हो गई है । इसके बावजूद अख़बार पढने वालों की संख्या बढ़ी है |

वैसे आईआरएस कुल पाठक संख्या की बात करता है उसे औसत पाठक संख्या की बात करनी चाहिए । औसत पाठक संख्या में बहुत अधिक इजाफा नहीं हुआ है। विज्ञापनदाता अभी भी औसत पाठक संख्या के आधार पर ही विज्ञापन के लिए स्थान खरीदते हैं।विज्ञापनदाता काफी हद तक ऐसे मानक इस्तेमाल करने में रुचि रखते हैं जिनके चलते कम दर पर विज्ञापन दिए जा सकें। फिर चाहे मामला टेलीविजन पर प्रति रेटिंग प्वाइंट लागत की हो या प्रिंट में एआईआर की। कुल पाठक संख्या में हो रहा इजाफा और ऑनलाइन में आ रही उछाल उम्मीद बंधाती है। आईआरएस 2019 के अनुसार करीब 5.4 करोड़ लोग ऑनलाइन समाचार पत्र पढ़ते हैं। कॉमस्कोर जो डिजिटल मीडिया पर ध्यान केंद्रित करता है,उसके मुताबिक करीब 27.9 करोड़ लोग ऑनलाइन समाचार पत्र पढ़ते हैं। ऑनलाइन राजस्व और मुनाफे के आंकड़ों का विश्लेषण दोनों में काफी बेहतर नजर आए। ऑनलाइन और ऑफलाइन पाठकों की तादाद में हो रहे इजाफे से राजस्व में भी बढ़ोतरी होनी चाहिए|

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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