प्रतिदिन:
पूर्व क्षमा याचना के साथ याद दिलाना चाहता हूँ कि न्याय जगत में एक कहावत है “ देरी से दिया न्याय, न्याय देने से इंकार है [justice is delayed justice is denied] राम जन्म भूमि पर मन्दिर निर्माण के मामले में यही हो रहा है | आस्था और आशा के विपरीत सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण से सम्बन्धित मामले को जनवरी २०१९ तक टाल दिया है | जल्दी सुनवाई और रोज सुनवाई की प्रार्थना अस्वीकार कर दी गई | सर्वोच्च न्यायलय का निर्णय सर माथे| लेकिन क्या इससे उन्हें एक गली नहीं मिल गई जो वोट कबाड़ने के नाम पर इस मुद्दे को गर्म किये हुए है और उनका हौसला नहीं बडा जो भारत के कानून को चुनौती देते आ रहे हैं? नीर –क्षीर, विवेकपूर्ण निर्णय की आस में बच्चे बूढ़े हो रहे हैं |
न्यायाधिपति रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के २०१० में अयोध्या की विवादित जमीन के तीन भाग करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं के समूह पर सुनवाई अगले साल करने का निर्देश दिया है । हाई कोर्ट ने २०१० के अपने फैसले में विवादित स्थल को तीन भागों रामलला, निर्मोही अखाड़ा व अन्य वादियों में बांटा था। वैसे इस विषय से जुड़े मामले वर्षों से लम्बित हैं | सर्वोच्च न्यायालय की प्राथमिकता निसंदेह अलग हो सकती हैं, जनता अपनी भावना के ऊपर हमेशा न्यायालय को सम्मान देती आई है| कल के इस फैसले से भाजपा पर दबाव बढ़ेगा। २०१९ लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के लिए ये महत्वपूर्ण होगा कि उसने राम मंदिर के निर्माण के लिए कुछ-न–कुछ कदम उठाए।भाजपा के अंदर से ही आवाज उठने लगी हैं कि मोदी सरकार अध्यादेश या बिल लाकर रास्ता साफ करे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत भी कह चुके हैं कि सरकार को कानून बनाना चाहिए। अब सवाल यह है की सत्तारूढ़ भाजपा के सामने राम मंदिर के निर्माण को लेकर क्या-क्या विकल्प हैं?
पहला अध्यादेश: सरकार अध्यादेश ला सकती है। सरकार के सहयोगी, जिसमें आरएसएस, वीएचपी और शिवसेना भी हैं, की मांग है कि अध्यादेश लाया जाए।दूसरा संसद में बिल: मोदी सरकार संसद में बिल लाकर भी कानून बना सकती है। मांग है कि आगामी शीतकालीन सत्र में बिल लाया जाए और इस संबंध में कानून बनाया जाए|तीसरा सर्वोच्च न्यायलय के फैसले का इंतजार: मोदी सरकार इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर भी छोड़ सकती है। अभी तक बीजेपी का यही रुख रहा है| सुनवाई अगले साल तक टल जाने से इस पर लोकसभा चुनाव से पहले कोई फैसला आने की संभावना कम हैं।
इस सब से असदुद्दीन ओवैसी जैसे लोग अध्यादेश लाने की चुनौती देने लगते हैं । कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि देश के बहुत से लोगों की अपेक्षा है कि इस मामले में जल्द सुनवाई हो| ये सब क्या है ? वोट कबाड़ने और मुद्दे को गर्म कर देश में वातावरण खराब करने के प्रयास नहीं है | विद्वान न्यायाधीश महोदय का विवेक , सरकार में बैठे कथित लौह पुरुष की हिम्मत , इस मसले के इधर या उधर के पैरोकार और आम जनता का धैर्य कसौटी पर है | देश हित में सोचिये,सब | कुछ कीजिये |