- अभिमत

अब आपको फैसला लेना है, जनादेश के प्रकाश में

प्रतिदिन:
अब आपको फैसला लेना है, जनादेश के प्रकाश में
दिल्ली से छनकर आ  रही खबरें प्रदेश के कुछ कांग्रेस नेताओं के लिए ठीक नहीं है | राहुल गाँधी चुनाव में पुत्रमोह और परिवार मोह से ग्रस्त नेताओं से खासे नाराज हैं | इन चुनावों का अंकगणित भी प्रदेश के इन नेताओं का समर्थन नहीं करता | बात-बात पर प्रजातंत्र की दुहाई देने वाले इन नेताओं से दो सवाल हैं पहला- कि जब नतीजे पक्ष में नहीं और अगले ५ साल सुधरने की कोई गुंजाइश नहीं तो कुर्सी का मोह क्यों ? दूसरा- राज्यसभा में प्रदेश के मतदाता के परोक्ष प्रतिनिधि के रूप में चयन होता है, चयन का आधार दल होता है | दल और खुद की प्रत्यक्ष  चुनाव  में पराजय के बाद आपको राज्यसभा में बैठने का नैतिक आधार कितना शेष है ?
पहले सवाल के पक्ष में आंकड़ों का भारी समर्थन है | विजय हासिल करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने इस बार ५८ प्रतिशत वोट हासिल कर एक कीर्तिमान दर्ज किया हैं, वहीं करारी शिकस्त का सामना करने वाली कांग्रेस को ३४.५०प्रतिशत मतदाताओं ने ही समर्थन दिया। प्रदेश कांग्रेस प्रमुख होने के कारण इस्तीफे की पेशकश करने वाले कमलनाथ और उनके दल के साथ अब  जन समर्थन नहीं है |राज्य में चार चरणों में हुए मतदान में पांच करोड़ से अधिक मतदाताओं में से तीन करोड़ ६५  लाख मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया, जो लगभग ७१  प्रतिशत है। इनमें से दो करोड़१४  लाख से अधिक वोट (५८ प्रतिशत) भाजपा के खाते में गए। कांग्रेस को लगभग एक करोड़ २७  लाख (३४.५०प्रतिशत) मत ही मिले। अब प्रदेश की इस सरकार को जनमत प्राप्त सरकार कैसे कहेंगे ? अन्य दलों  की बैशाखी की मजबूरी से बेहतर हार स्वीकार करना है | इससे सरकार और पार्टी की छबि प्रजातंत्र में विश्वास रखनेवालों  की बनती अब तो इस पर पुत्रमोह और परिवार मोह के वो ठप्पे मजबूत हो रहे हैं, जो विधानसभा के टिकट वितरण के दौरान लगे थे | तत्समय भी बेटे, भाई, भतीजे सब उपकृत हुए थे और आज इसी कारण कैबिनेट मंत्री हैं |

छनकर आई खबरों के अनुसार कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में राहुल गाँधी काफी गुस्से में दिखे, उन्होंने आरोप लगाया कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने अपने बेटों को टिकट दिलाने के लिए जोर लगाया| उनका गुस्सा होना लाजिमी है | रिपोर्ट के मुताबिक राहुल ने कहा कि पार्टी ने उन राज्यों में भी बहुत खराब प्रदर्शन किया, जहां उसकी सरकार थी| उन्होंने कहा कि राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत और मध्य प्रदेश के सीएम कमलनाथ ने अपने बेटों को टिकट दिलाने पर जोर दिया, जबकि वे अर्थात राहुल गाँधी इसके पक्ष में नहीं थे| राहुल ने इसी संदर्भ में पी. चिदंबरम का नाम भी लिया| प्रदेशों के नेता अपने इस कृत्य को कैसे नैतिक और प्रजातांत्रिक साबित करेंगे ? बड़ा सवाल है |

अब दूसरा सवाल- लोकसभा चुनाव हारने के बाद राज्यसभा की सदस्यता से जुड़ा है | वैसे अभी तक मेरी जानकारी में ऐसी कोई विधिक मिसाल नहीं है, फिर भी लोकसभा चुनाव हारने राज्यसभा सदस्यों को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वे अब किस नैतिक आधार पर राज्यसभा में प्रदेश का प्रतिनिधत्व कर रहे हैं | राज्यसभा में उनका निर्वाचन जिस दल की ओर से हुआ है उसे और आपको प्रदेश के मतदाताओं ने प्रत्यक्ष रूप से पराजित कर दिया है | राजनीतिक रूप से नितीश कुमार और ममता बनर्जी की पेशकश पर गौर कीजिये | नैतिक रूप से वे दोनों ज्यादा प्रजातांत्रिक हैं | रोज प्रजातंत्र की दुहाई देने वाले और न्याय जगत में मजबूती से खड़े होने वाले, प्रदेश के राज्यसभा सदस्य क्या अभी भी अपनी राज्यसभा सदस्यता को नैतिक मानते हैं | कोई मिसाल न होने का बहाना करने की जगह, खुद मिसाल बनाकर प्रजातंत्र में नया कीर्तिमान गढना चाहिए |

छह महीने पहले संपन्न विधानसभा चुनाव में  भाजपा को ४१प्रतिशत के साथ एक करोड़ ५६  लाख वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस को ४०.९० प्रतिशत के साथ एक करोड़ पचपन लाख से कुछ अधिक वोट हासिल हुए थे। भाजपा को अधिक मत मिलने के बावजूद २३०  विधानसभा में से १०९  सीट मिलीं और कांग्रेस को ११४  सीट। इस तरह कांग्रेस बहुमत के करीब थी और उसने बसपा, सपा और चार निर्दलीय समेत कुल सात विधायकों के समर्थन से सरकार बना ली थी | अब जनादेश विपरीत है, सवालों ने जवाब राजनीति से कम नैतिकता से ज्यादा जुड़े हैं, उससे भी ज्यादा जवाबों के साथ जो बात जुडी है- वो आपकी प्रजातंत्र में आस्था है | अब आपको फैसला करना है, जनता के फैसले के प्रकाश में |

श्री राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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